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पत्र : अखबारोंको

मैंने इस दुःखद घटनाका संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्दजीका दिया हुआ विवरण पढ़ा है। उसे मैं तबतक सही मानूँगा ही, जबतक अधिकृत रूपसे उसे गलत न साबित कर दिया जाये । उनका विवरण पहले तीन आरोपोंको अमान्य करता मालूम होता है । परन्तु सारे आरोपों को सच्चा मान लें, तब भी मुझे ऐसा ही लगता है कि स्थानीय अधिकारियोंने मक्खीको मारनेके लिए विशाल घनका इस्तेमाल किया है । किन्तु उन्होंने भीड़पर गोली चलानेकी जो कार्रवाई की है, उसके बारेमें ज्यादा फिर कभी कहूँगा ।

यह पत्र लिखने में तो मेरा हेतु सभी सत्याग्रहियोंको एक चेतावनी दे देना है इसलिए मैं यह कहूँगा कि १ से ४ तकके आरोपोंमें कही गई बातें यदि सही हों, तो लोगोंका यह आचरण सत्याग्रहकी प्रतिज्ञासे असंगत होगा। पूवें आरोपमें जैसा कहा गया है वैसा व्यवहार प्रतिज्ञासे संगत हो सकता है; परन्तु यदि आरोप सत्य हो, तो कहना होगा कि वह असमय किया गया, क्योंकि प्रतिज्ञामें जिस समितिकी बात कही गई है उसने दंगा-सम्बन्धी कानूनके अन्तर्गत दिये गये मजिस्ट्रेटके हुक्मका अनादर करनेका निर्णय नहीं किया है । मैं यह बात भरसक स्पष्टतासे कह देना चाहता हूँ कि इस आन्दोलनमें जो लोग हमारा परामर्श और सुझाव स्वीकार करना न चाहते हों, उनपर हम जरा भी दबाव नहीं डाल सकते । यह आन्दोलन मूलतः सभी लोगोंको अधिक से अधिक स्वतन्त्रता प्रदान करनेके उद्देश्यसे किया जा रहा है। इसलिए जो लोग सही या गलत तौरपर पकड़े गये हैं, उन्हें छोड़ देनेकी माँग सत्याग्रही बलपूर्वक नहीं कर सकते । हमारी प्रतिज्ञाका तत्त्व यह है कि हम स्वयं जेल जानेका उपक्रम करें, और जबतक समिति दंगा-कानूनको तोड़नेका निर्णय न करे, तबतक सत्याग्रहियोंका फर्ज है कि वे कोई टंटा बखेड़ा किये बिना भीड़के तितर-बितर होने आदिसे सम्बन्धित मजिस्ट्रेटकी आज्ञाका पालन करें और इस प्रकार यह बता दें कि वे स्वभावतः कानून- पालक हैं। मैं आशा करता हूँ कि आगामी रविवारको सत्याग्रह-सभाओं में जो भी भाषण दिये जायेंगे वे आवेश, क्रोध या रोषसे रहित होंगे। इस आन्दोलनकी विजय पूर्ण शान्ति, आत्मसंयम, सत्यपालन तथा कष्टसहनकी असीम क्षमतापर निर्भर है ।

इस पत्रको समाप्त करनेसे पूर्व में यह कह देना चाहता हूँ कि सत्याग्रही रौलट कानूनोंका विरोध करके शासकीय आतंकवादकी उस भावनाका विरोध कर रहे हैं जो उनके पीछे निहित है और जिसका ये कानून अन्यन्त स्पष्ट लक्षण हैं। दिल्लीकी दुःखद घटनाके कारण सत्याग्रहियोंकी यह जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है कि वे अपने दिलोंको मजबूत कर लें और तबतक इस संघर्षको जारी रखें जबतक रौलट कानून वापस नहीं ले लिये जाते ।

आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ४-४-१९१९