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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


संकोच हो रहा था । आपका स्वास्थ्य राष्ट्रकी निधि है और चार्लीकी आपके प्रति भक्ति लोकोत्तर और दिव्य है । मैं जानता हूँ कि उनका वश चले, तो वे किसी भी व्यक्तिको, पत्र द्वारा या स्वयं उपस्थित होकर, आपकी शान्ति और विश्रान्तिमें बाधा न डालने दें। मैंने आपको हर प्रकारकी तकलीफसे बचानेकी उनकी इस उच्च अभिलाषाका आदर किया है । परन्तु मुझे अब पता चला है कि आप तो बनारस में भाषण दे रहे हैं। चार्लीने तो आपके स्वास्थ्यका जो हाल बताया था, उससे मैं कुछ घबरा-सा गया था । लेकिन आपके भाषण देनेवाली बातकी जानकारी मिलनेपर उस सम्बन्धमें मेरा खयाल बदल गया है, और अब आपसे सन्देश माँगनेका साहस कर रहा हूँ - ऐसा सन्देश जिससे जिन्हें इस आगसे गुजरना है, उनको आशा और उत्साह मिले। जब मैंने इस लड़ाईको आरम्भ किया था, तब आपने मुझे आशीर्वाद भेजनेकी कृपा की थी; इसी बातसे प्रेरित होकर आपसे सन्देश माँग रहा हूँ । आप जानते हैं कि मेरे विरुद्ध बहुत बड़ी शक्तियाँ लगी हुई हैं। मुझे उनका जरा भी डर नहीं, क्योंकि मेरा दृढ़ विश्वास है कि वे सब असत्यका समर्थन कर रही हैं, और अगर हमारी सत्यमें पर्याप्त श्रद्धा होगी, तो हम उस श्रद्धाके बलसे इन शक्तियोंको अवश्य जीत लेंगे। किन्तु ये सारी शक्तियाँ मनुष्य के माध्यमसे काम करती हैं। इसलिए मैं इस महान् संघर्षमें, जो इसका समर्थन करते हैं, उनकी पावन सहायता प्राप्त करनेको उत्सुक हूँ । जबतक देशके राज- नैतिक जीवनको विशुद्ध बनानेके इस प्रयत्नके बारेमें आपकी विचारपूर्ण सम्मति[१]न मिलेगी, तबतक मुझे सन्तोष नहीं होगा। इस सम्बन्धमें किसी बातसे आपकी पहली सम्मतिमें कोई फर्क पड़ा हो, तो आप मुझे उसे भी बता देनेमें कोई संकोच न करें। मित्रोंकी सम्मतियाँ विरुद्ध हों, तो भी मैं उनका आदर करता हूँ, क्योंकि भले ही उनसे मेरा मार्ग बदले नहीं, लेकिन वे अनेक ज्योति-स्तम्भों [ लाइट हाउसेज़ ] समान हैं, जो हमें जीवनके तूफानी मार्गमें आनेवाले खतरोंके विरुद्ध सावधान करते हैं । चार्लीकी मित्रता मेरे लिए इसी कारण अमूल्य निधि बन गई है, क्योंकि वे मुझे अपने उन मतभेदोंको बतानेमें भी नहीं झिझकते जिनपर पूरी तरह विचार करके वे अभी अन्तिम निर्णय पर नहीं पहुँचे हैं। मैं इसे अपना बहुत बड़ा सौभाग्य मानता हूँ । बड़ी कृपा हो, यदि इस नाजुक घड़ीमें मुझे वही सौभाग्य आप भी प्रदान करें।

आशा है, आप अच्छे होंगे और मद्रास अहातेकी थकानेवाली यात्राके असरसे पूरी तरह मुक्त होकर ताजे और तन्दुरुस्त हो गये होंगे ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गां०

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
 
  1. १. गुरुदेवके उत्तरके लिए देखिए परिशिष्ट १ ।