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१७८. पत्र : बी० जी० हॉर्निमैनको



[ बम्बई]
अप्रैल ६, १९१९

प्रिय हॉर्निमैन,

इसके साथ एक महत्त्वपूर्ण पत्र[१]भेज रहा हूँ । आप द्विजेन्द्रबाबूको तो जानते ही हैं | ये सर रवीन्द्रनाथ ठाकुरके सबसे बड़े भाई हैं और अपने स्व० पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुरकी तरह लगभग संन्यासीका जीवन बिता रहे हैं। मेरे अनुमानसे उनकी उम्र अस्सी बरस से ऊपर ही है । इसलिए मेरे खयालसे यह पत्र छापने लायक है । मैं तो इस पत्रको उसकी फोटो प्रतिकृतिके रूपमें भी छापने को कहूँगा । परन्तु मैं यह चिट्ठी सिर्फ संलग्न पत्रको भेजनेके उद्देश्यसे ही नहीं लिख रहा हूँ । यदि अनुमति दें तो एक निवेदन यह भी करना है कि आप 'क्रॉनिकल' में कलका अग्रलेख लेखनीको प्रेमकी स्याही में डुबोकर लिखें । मैं अब आपको इतनी अच्छी तरह तो जानता ही हूँ कि आपमें ऐसा लेख लिखनेकी पूरी क्षमता है । और यदि मेरा सुझाव आपको स्वीकार हो, तो मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि अग्रलेख आपके हस्ताक्षरोंसे प्रकाशित हो ।

हृदयसे आपका,

[ अंग्रेजी से ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
  1. १. पत्र अंग्रेजीमें था; और उसका हिन्दी रूपान्तर यह है :

मार्च ३१, १९१९

परम आदरणीय भाईश्री गांधी,

मैं हृदयसे चाहता हूँ कि आप हमारे भ्रमित लोगोंको भलाईसे बुराईपर विजय पानेमें सहायता देनेके काममें निरन्तर आगे बढ़ते जायें । कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि आप मुझे तपस्था और उपवास आदिकी जो ताकीद करते हैं वह नितान्त आवश्यक नहीं है और इसलिए उन्हें छोड़ा जा सकता है। किन्तु पीछे सोचनेपर मैं देखता हूँ कि हम अपने दृष्टिकोणसे इस मामलेमें ठीक निर्णय करनेके योग्य हैं ही नहीं। आपको जो प्रेरणा मिल रही है वह इतने उच्च स्रोतसे मिल रही है कि आपके कथन और कार्यों के औचित्यपर शंका करनेके बजाय हमें कृतज्ञतापूर्वक यह मानना चाहिए कि उनके रूपमें हमें उस परम पिताका दिव्य ज्ञान और शक्तिसे पूर्ण आह्वान ही मिल रहा है ।

मेरी कामना है कि सर्वंशक्तिमान् और दयालु परमात्मा इस भयंकर संकटमें आपकी रक्षा करे और आपको शक्ति दें ।

तुम्हारा स्नेही,
बड़ोदादा द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर