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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
बलिदानके बिना कभी किसी देशका उत्थान नहीं हुआ

श्रद्धानन्दजीका एक तार आया है। उसमें कहा गया है कि अभी तक चार हिन्दुओं और पाँच मुसलमानोंके शव मिल पाये हैं। उनकी अन्त्येष्टि उनके धर्मोकी प्रथाके अनुसार कर दी गई है। श्रद्धानन्दजीने यह भी सूचित किया है कि लगभग २० व्यक्ति लापता हैं, तेरहको सख्त चोटें लगी हैं और उनका अस्पतालमें इलाज किया जा रहा है । यह शुरूआत कोई खराब शुरूआत नहीं कही जा सकती। बलिदानके बिना न तो कभी किसी देशका उत्थान हुआ है, न निर्माण । और हम लोग किसी भी प्रकार की हिंसाका सहारा लिए बिना, आत्मबलिदानके द्वारा, अपने राष्ट्रको गढ़नेका प्रयत्न कर रहे हैं। इसका नाम है सत्याग्रह । सत्याग्रहके शुद्ध रूपको सामने रखते हुए दिल्लीमें हम एक बात में 'चूक कर गये हैं। वहाँ एकत्रित भीड़ने निश्चय ही, अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किये गये लोगों की रिहाईकी माँग की थी। और यह भी कहा गया था कि जबतक पकड़े गये व्यक्तियोंको छोड़ा न जायेगा तबतक हम यहाँसे नहीं हटेंगे। ये दोनों ही काम गलत थे । गिरफ्तार लोगोंकी रिहाईकी माँग करना ठीक न था । सविनय अवज्ञाके द्वारा हम गिरफ्तारी और जेलकी सजा ही तो चाहते हैं । इसलिए इन दोनों बातों में से किसी भी बातके सम्बन्धमें रोष प्रकट करना अशोभनीय है । और वहाँसे न हटनेका हठ करना भी अनुचित था। इस आन्दोलनमें सत्याग्रही केवल उन्हीं कानूनोंको तोड़ सकता है जिन्हें प्रतिज्ञापत्र में उल्लिखित समिति तोड़नेके लिए चुने ।[१]जब हम अनुशासन, आत्म-नियन्त्रण नेतृत्व और आज्ञाकारिताके गुणोंका विकास कर लेंगे तब हम सामूहिक सत्याग्रह अधिक अच्छे ढंग से करनेके योग्य बन जायेंगे। जबतक ऐसा नहीं हुआ है मैंने यह सलाह दी है कि हम अवज्ञाके लिए वे ही कानून चुनें जिन्हें लोग व्यक्तिगत रूपसे तोड़ सकते हैं । इसलिए हमें चाहिए कि जबतक हममें पर्याप्त अनुशासन नहीं आया है और जबतक सत्याग्रहका तत्त्व पुरुष व स्त्रियाँ हजारोंकी तादादमें हृदयंगम न कर लें तबतक हम जुलूसों और सभाओंसे सम्बन्धित सभी कानूनोंका पालन करते रहें। जब हम कुछ चुने हुए कानूनों का उल्लंघन करते हैं तब हमारा यह फर्ज हो जाता है कि हम अन्य सब कानूनों का पालन करके अपनी कानूनका पालन करनेकी वृत्तिका परिचय दें। जब हम चाहिए जितना उतना ज्ञान और अनुशासन प्राप्त कर लेंगे तब हम देखेंगे कि मशीनगनें तथा अन्य सब प्रकार के शस्त्रादि, यहाँ तक कि विनाशकारी हवाई जहाज भी, हमें आतंकित न कर सकेंगे ।

पावन कर्त्तव्य

अब मुझे आपके समक्ष आपकी स्वीकृति के लिए दो प्रस्ताव रखने हैं। पहला प्रस्ताव पास करना हमारा पवित्र कर्त्तव्य है । इसमें उन लोगोंके प्रति गहरी सहानुभूति प्रदर्शित की गई है जिनके प्रियजन मौतके घाट उतार दिये गये हैं और साथ ही दिल्लीके लोगों तथा प्रदर्शनके आयोजकोंको आदर्श संयमके लिए बधाई दी गई है। श्रद्धानन्दजीको तार भेजा गया है जिसमें उनसे पूछा गया है कि जो लोग मारे गये हैं उनके परिवारोंकी

 
  1. १. देखिए " वक्तव्य : सत्याग्रह सभाकी ओरसे", ७-४-१९१९