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भाषण : महिलाओंकी विरोध सभामें

और किसी उपायसे वैसी नहीं हो सकती जैसी कि इस आन्दोलनसे । हिन्दू और मुसलमान आपसमें एक-दूसरेको अपना सगा भाई समझें । हिन्दुओंका कर्त्तव्य है कि वे अपने मुसलमान भाइयोंकी मुसीबतमें उनके साथ हमदर्दी जाहिर करें। मुसलमानोंको भी ऐसा ही करना उचित है। उन्हें चाहिए कि पारस्परिक मंत्री बढ़ानेका प्रत्येक सम्भव उपाय आजमायें और अपने मतभेदके कारणोंको निःशेष कर दें । मैं यह नहीं मानता कि आज जो मैत्रीभाव यहाँ देखने में आ रहा है और जो भाईचारा अभी हालमें दिल्लीमें दृष्टि- गोचर हुआ है उसका यह अर्थ है कि देशभर में हिन्दू और मुसलमान मित्र बन गये हैं । आज दोनों जातियोंके बीच जो मंत्रीकी भावना पैदा हुई है, उसे मजबूत बनानेके लिए आप लोग निकट भविष्यमें किसी मस्जिदमें अथवा किसी अन्य धार्मिक स्थानमें एकत्रित होकर कभी न टूटनेवाली मित्रताकी शपथ लें। गांधीजीने अपने भाषणको समाप्त करनेके पूर्व मुसलमान भाइयोंसे कहा कि आप लोग धन्यवादके पात्र हैं, क्योंकि आप लोगोंने आज हिन्दुओंको अपनेसे मिलने और अपना मैत्रीभाव दिखानेका अवसर दिया है ।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, ७-४-१९१९}}

१८१. भाषण : महिलाओंकी विरोध-सभामें[१]

बम्बई
अप्रैल ६, १९१९

महात्मा गांधीने सभाको सम्बोधित करते हुए कहा कि मैं तो आपके समक्ष काफी-कुछ विस्तारसे कहना चाहता था, लेकिन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्यके सिलसिलेमें उसी समय प्राप्त एक फौरी सन्देशके कारण मैं लम्बा भाषण नहीं दे पाऊँगा; मुझे इसका खेद है। मैंने अभी-अभी सुना कि मार्केटके[२]निकट एक कोई अशोभनीय-सी घटना हो गई है। शायद पुलिसने कोई गलती की है; या हो सकता है जनताने ही गलती की हो। लेकिन सभा छोड़नेसे पहले में भारतीय महिलाओंसे निवेदन करना चाहता हूँ कि वे रौलट विधेयकोंके विरुद्ध चलनेवाले संवैधानिक संघर्षमें पुरुषोंका हाथ बँटायें । जिस प्रकार कि सभी साधनोंका आधार, शरीर, निष्क्रिय होनेपर कोई भी आदमी ठीक ढंगसे काम नहीं कर सकता, इसी तरह यदि भारतीय महिलाएँ निष्क्रिय बनी रहीं और देशका अर्द्धांग निष्क्रिय रहा, तो देश ठीक ढंगसे कोई काम नहीं कर

 
  1. १. सभी वर्गों और सम्प्रदायोंकी महिलाभने विधेयकोंके प्रति अपना विरोध प्रकट करनेके लिए चीना बाग में एक सभा की थी। श्रीमती जयकरने अध्यक्षता की ।
  2. २. देखिए "पत्र : सर इब्राहीम रहीमतुल्लाको ", ८-४-१९१९ ।