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सत्याग्रहियोंको हिदायतें

बन्धन लगाती है कि वे कुछ कानूनोंका सविनय उल्लंघन करके सविनय अवज्ञा करें और इस प्रकार जेल जायें। इसलिए एक दृष्टिसे यह पत्र इसका उत्तम मार्ग बता सकता है, और वह इस तरह कि इसके प्रकाशनमें ही सविनय अवज्ञा निहित है । अन्य प्रकारके सार्वजनिक कार्योंमें वक्ता जो काम करने के लिए कहते हैं उन कामोंको करनेके लिए स्वयं बँधे नहीं होते। यह विसंगति एक भारी दोष है, और हमारा उद्देश्य इस दोषकी ओर ध्यान दिलाना है। सार्वजनिक काम करनेका यह तरीका गलत है। सत्याग्रहकी रीति अनोखी है। उसमें आचरण ही उद्देश्य होता है । इसलिए इसमें जो कुछ कहा जा रहा है, वह अपने अनुभवकी कसौटीपर कसकर देखा हुआ होगा, और इस प्रकार अनुभवकी कसौटीपर कसकर जो भी उपाय बताये जायेंगे वे अच्छी तरह आजमाकर देखी हुई दवा-जैसे होंगे । अतएव, हम आशा करते हैं कि पाठकगण हमारी सलाहको स्वीकार करनेमें न हिचकिचायेंगे, क्योंकि वह अनुभवपर आधारित होगी ।

खबर

कल बहुत-सी बड़ी-बड़ी घटनाएँ घटित हुई । परन्तु सत्याग्रहियोंके अनवरत प्रयास से मिल मजदूरोंने अपनी-अपनी मिलोंमें कामपर रहकर - क्योंकि मालिकों- की तरफसे उन्हें छुट्टी नहीं मिल सकी थी - जिस ढंगसे राष्ट्रीय दिवस मनाया, वह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण घटना थी ।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ९-४-१९१९

१८३. सत्याग्रहियोंको हिदायतें[१]

[ बम्बई
अप्रैल ७, १९१९]

अब हमें किसी भी क्षण पकड़े जानेकी आशा रखनी चाहिए। इसलिए यह ध्यान में रखना चाहिए कि यदि किसीको गिरफ्तार किया जाये, तो वह कोई भी कठिनाई खड़ी किये बिना गिरफ्तार हो जाये और यदि उसपर अदालतमें हाजिर होनेका सम्मन तामील किया जाये तो वह अदालतमें हाजिर हो जाये । उसे अपने मुकदमे में किसी वकील- को नहीं रखना चाहिए और न कोई सफाई ही देनी चाहिए। अगर जुर्माना किया जाये और जुर्माना न देनेपर बदलेमें कैद की सजा दी गई हो, तो कैद की सजा स्वीकार कर लेनी चाहिए। अगर केवल जुर्माना ही किया गया हो, तो जुर्माना नहीं देना चाहिए और उसके बदलेमें, यदि उसके पास कोई सम्पत्ति हो, तो उसे बिक जाने देना चाहिए । सत्याग्रहियोंको अपने साथीके पकड़े जाने या कैदकी सजा दिये जानेपर शोकका या

 
  1. यह परचा सत्यग्राही नामक अपंजीकृत सप्ताहिके प्रथम अंक(७-४-१९१९)के साथ प्रकाशित हुआ था