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वक्तव्य : सत्याग्रह-सभाकी ओरसे

(४) कानून ऐसे चुने जायें जिनकी सविनय अवज्ञा करके जनताको कुछ शिक्षण प्राप्त हो और उसे एक ईमानदार सार्वजनिक कार्यकर्त्ताके मार्गमें पड़नेवाली कठिनाइयोंसे बाहर निकालनेका एक स्पष्ट मार्ग बताया जा सके;

(५) निषिद्ध साहित्यके सिलसिले में ऐसी पुस्तकों और पुस्तिकाओंका चुनाव किया जाये जो सत्याग्रहके अनुरूप हों, और जो इसीलिए ऐसे निर्दोष प्रकारकी हों, जिनसे प्रत्यक्ष अथवा परोक्षरूपमें हिंसाको कोई बढ़ावा न मिल सके।

सविनय अवज्ञा कैसे की जाये

सत्याग्रहियोंको निषिद्ध साहित्यकी प्रतियाँ बाँटनेके लिए मिलनी चाहिए। सत्याग्रह-सभाके मन्त्रियोंसे ये प्रतियाँ एक सीमित संख्यामें प्राप्त की जा सकती हैं । सत्याग्रहियोंको यथासम्भव विक्रेताके रूपमें अपना नाम व पता भी उनपर लिख देना चाहिए ताकि सरकार जब चाहे मुकदमा चलानेके लिए आसानीसे उनका पता लगा सके। जाहिर है कि इस साहित्यको चोरीसे बेचनेका कोई प्रश्न ही नहीं उठ सकता। साथ ही, इस साहित्य के विक्रयका अनावश्यक प्रदर्शन भी नहीं करना चाहिए।

सत्याग्रही चाहें तो इस प्रकारका साहित्य पढ़कर भी सुना सकते हैं और इसके लिए श्रोताओंके छोटे-छोटे दल बना सकते हैं। चुने हुए निषिद्ध साहित्यका मन्शा केवल सम्बन्धित कानूनको विनयपूर्वक भंग ही करना नहीं है, बल्कि यह भी है कि उच्चतर नैतिक मूल्योंका उत्तम साहित्य जनताके लिए सुलभ कर दिया जाये। सरकारसे इस साहित्यको जब्त कर लेनेकी ही अपेक्षा है। सत्याग्रह आर्थिक दृष्टिसे यथासम्भव आत्म- निर्भर होता है, होना चाहिए। इसलिए सत्याग्रहियोंको चाहिए कि प्रतियोंके जब्त कर लिए जानेपर वे या तो खुद या इच्छुक मित्रोंकी सहायता लेकर निषिद्ध साहित्यकी प्रतिलिपियाँ तैयार करें और उनके जब्त होनेतक उनमें से जनताको पढ़कर सुनायें। सरकारका कहना है कि उसे इस प्रकार पढ़कर सुनाना निषिद्ध साहित्यके प्रचारके बराबर ही होगा । और सभी प्रतियाँ जब्त हो जाने या जनतामें बँट जानेपर, सत्याग्रही उपलब्ध पुस्तकोंके कुछ उद्धरण अपने हाथसे लिख-लिखकर जनतामें बाँट सकते हैं और इस प्रकार अपना सविनय अवज्ञा आन्दोलन जारी रख सकते हैं।

समाचारपत्रोंके प्रकाशनसे सम्बन्धित कानूनको सविनय भंग करनेके लिए प्रत्येक सत्याग्रह-केन्द्र से पंजीयन कराये बिना एक हस्तलिखित समाचारपत्र निकाला जाये। उसका आकार आधे फूलस्केप कागजसे बड़ा होना जरूरी नहीं है। ऐसे समाचारपत्रका सम्पादन करते समय पता चलेगा कि आधे पृष्ठको भरना भी कितना कठिन है। सभी जानते हैं कि अधिकांश समाचारपत्रोंमें भरतीकी सामग्री बहुत रहती है। और इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बहुत ही सख्त कानूनके आतंक के सायेमें लिखे जानेवाले समाचारपत्रोंके लेख दो अर्थी होते हैं।[१] कानून-भंग करनेके दण्डके हर प्रकारके भयसे मुक्त सत्याग्रही तो एक अपंजीयत समाचारपत्रमें ही, अपने अन्तःकरणकी आवाजके अतिरिक्त अन्य किसी भी विचारसे सर्वथा परे होकर अपने

  1. १. समाचारपत्रोंका क्या उद्देश्य है-इस सम्बन्धमें गांधीजीके विचारोंके लिए देखिए खण्ड १४,“समाचारपत्र", १४-११-१९१७ से पूर्व।