पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/२३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जा सकता । स्वदेशी व्रत किसी बाहरी शक्ति या घटनाक्रमका परिणाम नहीं है । किन्तु बहिष्कार केवल दुनियादारीका और राजनैतिक हथियार है। उसकी जड़ विद्वेषके पंकमें है और उसके पीछे दण्ड देनेकी वृत्ति होती है ।और मुझे तो जो राष्ट्र बहिष्कारका सहारा लेता है उसके लिए अन्ततः हानि ही दिखाई देती है। जो सदा सत्याग्रही ही रहना चाहता है, वह किसी बहिष्कार आन्दोलनमें भाग नहीं ले सकता, और स्वदेशीके बिना सतत सत्याग्रह असम्भव है। मैंने बहिष्कारका अर्थ यही माना है। यह सुझाव दिया गया है कि जबतक रौलट कानून रद न हो जाये, तबतक हम ब्रिटिश मालका बहिष्कार करें और जब ये कानून रद हो जायें, तब वह बहिष्कार बन्द कर दें। बहिष्कारकी ऐसी योजनामें हमें इस बातकी स्वतंत्रता है कि हम चाहें तो जापानी या दूसरे विदेशी माल, वे चाहे कितने ही बुरे और सड़े-गले हों, ले सकते हैं। यदि विदेशी माल ही लेना उचित है तब तो अंग्रेजोंके साथ राज्य-सम्बन्ध के कारण मैं अंग्रेजी माल ही लूँगा और उस आचरणको उचित समझूँगा।

अगर हम अंग्रेजी मालके बहिष्कार करनेकी घोषणा करते हैं तो यह अपने आपको इस स्थिति में डाल देना होगा कि लोग हमपर यह आरोप लगायें कि हम अंग्रेजोंको दण्डित करना चाहते हैं। किन्तु उनसे हमारा कोई झगड़ा नहीं है। हमारा झगड़ा तो अधिकारी-वर्गसे है। और सत्याग्रह के नियमके अनुसार तो हम अधिकारी-वर्गके प्रति भी वैरभाव नहीं रख सकते; और चूंकि हम किसीके प्रति वैरभाव नहीं रख सकते इसलिए बहिष्कारको अंगीकार करना मुझे तो किसी भी प्रकार उचित नहीं जान पड़ता।

स्वदेशी व्रत

उपर्युक्त सीमित स्वदेशी व्रतका पूरी तरह पालन करनेके लिए मैं यह प्रतिज्ञा लेनेकी सलाह दूंगा : “ईश्वरको साक्षी मानकर मैं गम्भीरतापूर्वक घोषित करता हूँ कि आजसे मैं अपनी व्यक्तिगत जरूरतोंके लिए भारतकी रुई, रेशम या ऊनसे बने हुए कपड़ेका ही उपयोग करूँगा; और मैं विदेशी कपड़ेका सर्वथा त्याग कर दूँगा तथा मेरे पास जो विदेशी कपड़े होंगे, उन्हें नष्ट कर दूंगा।"

मुझे आशा है इस प्रतिज्ञाको लेनेके लिए बहुतसे स्त्री-पुरुष तैयार हो जायेंगे; और जब बहुत-से स्त्री-पुरुष तैयार होंगे, तभी इस प्रतिज्ञाको सार्वजनिक रूपसे लेना वांछनीय होगा। थोड़े-से स्त्री-पुरुष भी इस प्रतिज्ञाको सार्वजनिक रूपमें ले सकते हैं; मगर स्वदेशीको राष्ट्रीय आन्दोलनका रूप देनेके लिए यह आवश्यक है कि इसमें बहुत सारे लोग शामिल हों। जो लोग इस प्रस्तावित आन्दोलनको पसन्द करते हों उन्हें मेरे विचारसे, इसे प्रारम्भ करनेके लिए तत्काल कोई कारगर कदम उठाना चाहिए। व्यवसायियोंसे मिलकर बातचीत करना जरूरी है। साथ ही अनावश्यक जल्दबाजी करनेकी जरूरत भी नहीं है। स्वदेशीकी नींव अच्छी तरह ठोस आधारोंपर डाली जाये। यह इसके लिए बिलकुल उपयुक्त अवसर है; क्योंकि मैंने देखा है कि जब सत्याग्रह जैसा कोई पावन आन्दोलन चल रहा होता है तो ऐसे सम्बद्ध प्रयासोंकी सफलताकी अधिक सम्भावना होती है ।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १७-४-१९१९

न्यू इंडिया, १९-४-१९१९