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१८९. स्वदेशी व्रत-२

[ अप्रैल ८, १९१९]

स्वदेशीकी प्रतिज्ञाका पूरा पाठ इस प्रकार है:

"ईश्वरको साक्षी मानकर मैं गम्भीरतापूर्वक घोषित करता हूँ कि आज से मैं अपनी व्यक्तिगत जरूरतोंके लिए भारतकी रुई, रेशम या ऊनसे बने हुए कपड़ोंका ही उपयोग करूँगा, और में विदेशी कपड़ेका सर्वथा त्याग कर दूँगा तथा मेरे पास जो विदेशी कपड़े होंगे, उन्हें नष्ट कर दूँगा ।"

इस प्रतिज्ञाका ठीक-ठीक पालन करनेके लिए वास्तवमें यह जरूरी है कि हम हाथसे कते हुए सूतके, हाथसे बुने हुए कपड़े ही इस्तेमाल करें। वह कपड़ा स्वदेशी नहीं है जो देशमें बुना गया है, लेकिन जिसका सूत विलायतसे आया है; चाहे वह सूत हिन्दुस्तानकी ही रुईका कता हुआ क्यों न हो। हम इस दृष्टिसे पूर्णता तभी प्राप्त करेंगे जब हमारे देशकी रुई देशी चरखोंपर काती जाये और यह कता हुआ सूत देशी करघोंसे ही बुना जाये। लेकिन ऊपर दी हुई प्रतिज्ञाके लिए सिर्फ इतना ही काफी है कि हम वह कपड़ा इस्तेमाल करें जो हिन्दुस्तानमें देशी रुईसे काते गये सूतसे बुना गया हो, भले ही उसकी कताई और बुनाई विदेशसे आई मशीनों पर ही क्यों न हुई हो।

मैं यह भी कह दूँ कि हमने यहाँ जिस सीमित स्वदेशीका उल्लेख किया है, उसका व्रत लेनेवाले लोग स्वदेशी वस्त्रोंके उपयोगसे ही सन्तुष्ट नहीं रहेंगे। वे इस व्रतको यथासम्भव अधिकसे-अधिक चीजोंपर लागू करेंगे।

अंग्रेज मालिकोंकी मिलें

मैंने सुना है कि भारतमें अंग्रेज मालिकोंकी ऐसी मिलें हैं, जिनमें हिन्दुस्तानी साझेदार नहीं हो सकते। अगर यह बात सच है तो मैं ऐसी मिलोंमें बने हुए कपड़ेको विदेशी समझता हूँ। इसके अतिरिक्त ऐसा कपड़ा द्वेष-भावसे दूषित है। ऐसे कपड़ेका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों न बना हो। अधिकांश लोग ऐसी बातोंपर ध्यान नहीं देते। सब लोगों से इस बातका विचार करनेकी आशा नहीं करनी चाहिए कि उनके कामसे देश-हितको उत्तेजन मिलता है या उसके मार्ग में कठिनाइयाँ आती हैं। लेकिन जो लोग पढ़े-लिखे हैं, जो विचारशील जिनकी बुद्धि परिष्कृत है, या जो अपने देशकी सेवा करनेकी इच्छा रखते हैं, उनका कर्त्तव्य है कि वे अपने हर कामको -- चाहे वह काम व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक -- ऊपर बताई गई कसौटी पर कसकर देखें। और जब वे आदर्श, जो राष्ट्रीय महत्त्वके जान पड़ते हों और जिन्हें व्यावहारिक अनुभवकी कसौटीपर कसकर देख लिया गया हो, जनताके सामने रखे जायेंगे तो, जैसा कि 'गीता' में कहा है, "जन-साधारण श्रेष्ठ