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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जनोंके उन कार्योंका अनुसरण करेगा।"[१]आम तौरसे विचारशील पुरुषों और स्त्रियोंने भी अभी तक ऊपर कही हुई रीतिके अनुसार आत्म-निरीक्षण नहीं किया है। इस तरकी उनकी इस उपेक्षासे राष्ट्रको नुकसान पहुँचा है। और मेरे विचारसे, ऐसा आत्म-निरीक्षण उसी आदमीके लिए सम्भव है जिसे धर्मका बोध हो।

हजारों लोगोंका खयाल यह है कि हिन्दुस्तानकी मिलोंमें बने हुए कपड़ेका इस्तेमाल करके वे स्वदेशी व्रतका पालन कर रहे हैं। सचाई यह है कि बहुत बढ़िया कपड़ा विदेशी रुईसे विदेशोंमें कते सूतसे बनाया जाता है। इसलिए ऐसे कपड़ेका इस्तेमाल करनेमें सन्तोष केवल इतना ही हो सकता है कि वह हिन्दुस्तानका बुना हुआ है। करघोंपर भी बहुत बढ़िया कपड़ा बुननेके लिए विदेशी सूत ही काममें लाया जाता है। ऐसे कपड़ेका इस्तेमाल करनेमें स्वदेशी - व्रतका पालन नहीं होता; और यह कहना कि ऐसा करके हम स्वदेशीका पालन कर रहे हैं, अपने आपको धोखा देना है। स्वदेशी में भी सत्याग्रह अर्थात् सत्यपर आग्रह आवश्यक है। जब पुरुष यह कहेंगे कि 'हम शुद्ध स्वदेशी कपड़ा ही पहनेंगे, चाहे हमको एक ही धोतीसे सन्तुष्ट रहना पड़े' और जब स्त्रियाँ दृढ़तापूर्वक यह कहेंगी कि 'हम शुद्ध स्वदेशी- व्रतका पालन करेंगी, चाहे हमको सिर्फ इतना ही कपड़ा मिल सके जिससे हम मुश्किलसे अपनी लज्जा-निवारण कर सकें,' तभी हम अपने महान् स्वदेशी व्रतके पालनमें सफल होंगे। अगर कुछ एक हजार स्त्री और पुरुष इस भावको रखते हुए स्वदेशी-व्रत ले लें तो दूसरे भी यथाशक्ति उनका अनुकरण करनेकी चेष्टा करेंगे। तब वे यह देखेंगे कि उनके तोशाखानेमें जो वस्त्र हैं, उनसे स्वदेशीका पालन कहाँतक होता है । और मैं कह सकता हूँ कि जिन लोगोंको मजा-मौज और व्यक्तिगत साज-सजावटसे कोई लगाव नहीं है, वे स्वदेशीको बड़ा प्रोत्साहन दे सकते हैं ।

आर्थिक उद्धारको कुंजी

आम तौरपर देखा जाये तो भारतमें ऐसे बहुत कम गाँव हैं, जिनमें जुलाहे न हों। स्मरणातीत कालसे हमारे गाँवोंमें किसान, जुलाहे, बढ़ई, चमार, लुहार इत्यादि रहते आये हैं, किन्तु हमारे किसानोंको दरिद्रताने घेर लिया है और हमारे जुलाहोंका व्यापार केवल गरीब लोगोंके ही सहारे चलता है। इन्हें अगर हम हिन्दुस्तानकी रुईसे हिन्दुस्तान में कता सूत दे दिया करें तो हम इनसे अपनी जरूरतका कपड़ा बुनवा सकते हैं। शुरूमें मुमकिन है कि वह कपड़ा मोटा हो; किन्तु लगातार कोशिश करते रहनेसे हम उन्हें इस लायक बना लेंगे कि वे अच्छे सूतसे भी बुनाई कर सकें। ऐसा करके हम अपने जुलाहोंकी दशा सुधारेंगे और अगर एक कदम और आगे बढ़ें तो हम अपने मार्गकी अपरिमित कठिनाइयोंको सहज ही दूर कर सकते हैं। हम आसानीसे अपनी स्त्रियों और बच्चोंको सूत कातना और कपड़ा बुनना सिखा सकते हैं, और अपने घरोंमें बने हुए कपड़ोंसे अधिक शुद्ध और कौन-सा वस्त्र हो सकता है? मैं अपने अनुभवसे कहता हूँ कि इस तरह काम करनेसे हम बहुत-सारी

  1. १.यद्यदाचरति श्रेष्ठः तत्तदेवेतरो जनः । गीता, ३-२१