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१९०. हिन्दू-मुस्लिम एकताका व्रत[१]

अप्रैल ८, १९१९१[२]

पिछले रविवारको सोनापुरी मस्जिदके आँगन में हिन्दू-मुसलमानोंकी एक विराट् सभा हुई थी। जैसे चौपाटीकी सभा में स्वदेशी व्रतकी सूचना दी गई थी, वैसे ही यहाँ इस सभामें हिन्दू-मुस्लिम एकताका व्रत लेनेकी सूचना दी गई और जैसे स्वदेशी-व्रतके विषयमें मुझे चेतावनी देनी पड़ी थी, वैसा ही मैंने इस सम्बन्धमें भी किया। अमुक अवसरपर हम हर्षावेशमें आकर बहुतसे काम करनेको तैयार हो जाते हैं और बादमें कभी-कभी पछताना पड़ता है। व्रत धार्मिक वस्तु हैं और कोई भी व्रत हम आवेशमें हरगिज नहीं ले सकते। मनको शुद्ध करके, चित्तको शान्त करके, ईश्वरको साक्षी रखकर ही व्रत लिए जा सकते हैं। स्वदेशी व्रतके बारेमें लिखते हुए मैंने जो स्पष्टीकरण किया है, वह वहाँ भी लागू होता है। जो काम हम साधारण संयम रखकर लगातार नहीं कर सकते, उसे करनेमें मदद प्राप्त करनेके लिए व्रतरूपी महासंयमका पालन करते हैं। इसीलिए व्रतके विषयमें ऐसी कल्पना है कि मनुष्य व्रत लेकर और पालन करके ही बनते हैं । हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियाँ आपसमें मित्रता रखें और ऐसा ही बरताव करें, जैसा माँके जाये भाई करते हैं, ऐसी स्थिति तो अलौकिक कहलायेगी। ऐसी स्थिति भारतमें पैदा होनेसे पहले दोनों जातियोंको बहुत त्याग करना पड़ेगा और अपने आजतक के विचारोंमें काफी परिवर्तन करने होंगे। दोनों जातियाँ एक-दूसरेके सम्बन्धमें अपनी बातचीतमें बहुत कड़ी कहावतें काममें लाती हैं जिनका भाव एक-दूसरेके बीच मौजूद विरोध-भावको प्रकट करने और बढ़ानेवाला होता है। केवल हिन्दुओंकी मण्डलीमें हम अक्सर मुसलमानोंकी बात करते समय कठोर शब्द इस्तेमाल करनेमें नहीं हिचकिचाते और वैसा ही मुसलमान मण्डलीमें होता है। बहुत-से तो यही मानते हैं कि हिन्दू-मुसलमानोंमें जन्मजात वैर है और वह किसी भी तरह नहीं मिट सकता। कई जगह हम देखते हैं कि दोनों में परस्पर अविश्वास होता है। मुसलमानोंको हिन्दुओंकी तरफसे डर है, हिन्दुओंको मुसल- मानोंका भय लगता है। इसमें शक नहीं कि इस विषम और हीन स्थितिमें दिन-दिन सुधार होता जा रहा है। समय अपना काम करता ही रहता है। हम चाहें या न चाहें, तो भी हमें इकट्ठे होकर रहना पड़ता है । परन्तु व्रत लेनेका अर्थ यह है कि कालके प्रभावसे जिस चीजमें घट-बढ़ होनेकी सम्भावना है, उसे हम महासंयम रखकर जल्दी अस्तित्वमें ले आयें। यह कैसे हो सकता है? हिन्दुओं अर्थात् कट्टर हिन्दुओंकी

  1. १. मूलके अनुसार यह गांधीजी द्वारा स्वीकृत उनके हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी पत्रकका स्वतन्त्र अनुवाद है । यह ' सत्याग्रह माला - २' प्रतीत होता है । 'सत्याग्रह माला - १' के लिए देखिए परिशिष्ट १।
  2. २.देखिए महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५।