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हिन्दू-मुस्लिम एकताका व्रत

सभा होनी चाहिए और उन्हें इस बारेमें गहरा विचार करना चाहिए। हिन्दुओंकी मुसलमान भाइयोंके प्रति हमेशा एक शिकायत रहा करती है कि वे गोमांसका भक्षण करते हैं और खास तौरपर बकर ईदके दिन गायका बलिदान करते हैं। जबतक गायको बचानेके लिए बहुत-से हिन्दू मुसलमानोंको मारनेकी हद तक जानेको तैयार रहते हैं, तबतक मुसलमानों और हिन्दुओंमें सच्ची एकता होना असम्भव ही दिखता है। हमारी हिंसावृत्तिसे विवश होकर हमारे मुसलमान भाई गोवधका त्याग कर देंगे, इसे मैं व्यर्थकी आशा मानता हूँ। मैं नहीं मानता कि गोरक्षिणी सभाओंके प्रयासोंसे गोवधकी संख्या में कुछ भी कमी हुई हो। ऐसा माननेका मुझे एक भी कारण नहीं मिला। मैं अपने आपको कट्टर हिन्दू मानता हूँ। मेरा यह खयाल है कि अत्यन्त शुद्ध रूपमें हिन्दू-धर्मका पालन करनेवाला गायको बचानेके लिए गोवध करनेवालेकी हत्या करनेकी बात नहीं सोच सकता। हिन्दुओंके पास यको बचानेका एक ही उपाय है। और वह यह है कि वे गायका वध न देख सकें तो अपना बलिदान दे दें । इस प्रकार योग्य अधिकारी हिन्दू थोड़ेसे भी बलिदान दे दें तो मुझे विश्वास है कि असंख्य मुसलमान भाई गोवधका त्याग कर देंगे। परन्तु यह तो सत्याग्रह हुआ, यह तो विनय हुई। जैसे मैं अपने भाईसे कुछ भी इन्साफ चाहूँ, तो अपने पर कष्ट झेलकर ही चाह सकता हूँ। अपने भाईको दुःख देकर नहीं मांग सकता। हकसे तो कुछ माँगा ही नहीं जा सकता। अपने भाईके विरुद्ध मुझे एक ही हक है और वह यह है कि मैं मर मिटूँ। जब हिन्दुओंके हृदयोंमें ऐसा शुद्ध प्रेमभाव स्फुरित हो उठे, तभी हिन्दू-मुस्लिम एकताकी आशा रखी जा सकती है। जैसे मैं हिन्दू भाइयोंके साथ इस तरह बातचीत कर सकता हूँ वैसे ही मुसलमान भाइयोंके साथ बातचीत कर सकना चाहिए। उन्हें जान लेना चाहिए कि हिन्दुओंके प्रति उनका क्या कर्तव्य है। दोनोंमें जब त्यागवृत्ति ही रहे, दोनों अपने हकोंके लिए कोशिश न करें और फर्ज अदा करनेका ही प्रयत्न करें, तभी बहुत वर्षोंसे चले आ रहे भेद-भाव मिट सकते हैं। दोनोंके मनमें एक-दूसरेके धर्मके लिए आदर होना चाहिए। कोई एक-दूसरे एकान्तमें भी न चाहे और कोई कड़े शब्द काममें ले, तो हम उसे ऐसा करनेसे रोकनेके लिए विनयपूर्वक समझायें। इस प्रकार महान् प्रयत्न हो, तभी भेदभाव मिट सकता है। जब वैसा करनेको बहुतसे हिन्दू और बहुतसे मुसलमान तैयार हो जायेंगे, तब हमारा लिया हुआ व्रत सुशोभित होगा। मैंने जो कहा है उससे अब इस व्रतकी महत्ता और कठिनाई आसानीसे समझमें आ सकती है। मुझे आशा है कि इस शुभ अवसरपर और जिस समय देशमें सत्यका बड़ा आग्रह चल रहा है, वह अवसर शुभ ही है --ऐसे अवसरपर मैं चाहता हूँ कि हम यह एकताका व्रत लें। इसके लिए प्रमुख मुसलमान भाई और प्रमुख हिन्दू भाई शुरूमें मिलकर खूब विचार करें। बादमें इकट्ठे होकर वे एक निश्चयपर पहुँच सकेंगे, तो मैं अवश्य व्रत लेनेकी सलाह दूँगा। और ऐसा प्रयत्न जो अभी हो रहा है, यदि जारी रहा, तो मुझे उम्मीद है कि थोड़े ही दिनों में हम उसका फल देख लेंगे। व्यक्तिगत रूपमें तो व्रत आज भी लिया जा सकता है और मैं चाहता हूँ कि बहुत से हिन्दू-मुसलमान सदा यह व्रत लेते रहें। परन्तु मेरी चेतावनी

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