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१९४. पत्र : एफ० सी० ग्रिफिथको

बम्बई अप्रैल ८, १९१९

प्रिय श्री ग्रिफिथ,

उस स्वयंस्फूर्त जुलूसमें भाग लेनेवाले मुख्य-मुख्य व्यक्तियोंके बयान अब मेरे सामने हैं। उनके बयानकी[१]एक नकल मैं इसके साथ भेज रहा हूँ । आप उसमें देखेंगे कि :

(१) वे ट्रामें रोकनेके बारेमें लगाये गये आरोपसे दृढ़तासे इनकार करते हैं।
(२) वे इस बात से भी इनकार करते हैं कि वहाँ इकट्ठे लोगोंने तितर-बितर होनेसे इनकार किया था, या श्री हार्करके आदेशका उल्लंघन करके आगे बढ़ते जानेकी धमकी दी; इसके विपरीत उन्होंने तुरन्त ही बिना किसी आनाकानीके उनके आदेशोंका पालन किया ।
(३) उनका कहना है कि लठैत रंगरूट और सशस्त्र पुलिस अकारण ही जनसमूहपर टूट पड़ी और बड़ी मुश्किलसे श्री हार्करके रोकनेपर मारना

बन्द किया ।

ऊपर जिस हमलेकी बात कही गई है, उसमें घायल हुए लोगोंमें से जिन दोसे मैं मिला हूँ, उनके सिरोंपर काफी गहरी चोटें थीं । एकसे तो मैंने रविवारको उसीके घर मुलाकात की थी, और दूसरेको लोग कल सुबह मेरे घर ले आये थे । यदि आपका जैसा खयाल है, उस मजमेमें ज्यादातर बदमाश लोग थे तो यह बहुत ही विचित्र लगता है कि वे बदलेकी कोई भी कार्रवाई किये बिना कैसे लौट गये; और यदि उसमें ज्यादातर मध्यमवर्गके प्रतिष्ठित लोग थे, जो मुझे लगता है कि सही है, तो यह विश्वास करना कठ जाता है कि आपने जिस तरहसे मुझे बतलाया है, उस तरहसे उन्होंने सचमुच ट्रामें रोकी होंगी ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५१०) की फोटो नकलसे ।

 
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