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१९७. सन्देश : देशभाइयों के नाम

अप्रैल ९, १९१९

महात्मा गांधीके सचिव श्री देसाई लिखते हैं:

महात्मा गांधीको दिल्ली जाते हुए मार्गमें कोसीमें यह हुक्म दिया गया कि वे पंजाबमें प्रवेश न करें, दिल्लीमें प्रवेश न करें और बम्बईमें ही रहें। जिस अधिकारीने उनपर हुक्म तामील किया, उसने बहुत ही शिष्ट व्यवहार किया और उन्हें विश्वास दिलाया कि यदि उन्होंने इस हुक्मको न माननेका निर्णय किया तो उसे बड़े दुःखके साथ उनको गिरफ्तार करना पड़ेगा, किन्तु इस कारण उनके बीच कोई दुर्भाव उत्पन्न न होगा। श्री गांधीने मुसकराते हुए कहा कि मुझे तो इस हुक्मको माननेसे इनकार करना ही पड़ेगा, क्योंकि यह मेरा कर्त्तव्य हैं, लेकिन आपको भी प्रसन्नतापूर्वक अपने कर्त्तव्यका पालन करना चाहिए। हमें इस बीच जो चन्द मिनटोंका समय मिला उसमें गांधीजीने मुझे निम्न सन्देश लिखाया। अपने लिखित सन्देशकी ही तरह उन्होंने मुझे जो मौखिक सन्देश दिया था, उसमें भी इस बातपर बहुत जोर दिया कि उनकी गिरफ्तारीपर किसीको नाराज नहीं होना चाहिए, और न कोई ऐसा काम ही करना चाहिए जिसमें असत्य और हिंसा हो, क्योंकि ऐसा करनेसे यह पवित्र उद्देश्य कलंकित होगा।[१]

उनका सन्देश यह है:

मेरे लिए यह अत्यन्त संतोषकी बात है और आपके लिए भी होनी चाहिए कि मुझे पंजाब सरकारकी ओरसे यह आदेश[२]

मिला है कि मैं उस प्रान्तकी सीमामें प्रवेश न करूँ और दूसरा आदेश दिल्ली सरकारकी ओरसे मिला है कि में दिल्लीके इलाकेमें पाँव न रखूं। इसके सिवा इसके बाद ही भारत-सरकारकी तरफसे यह हुक्म मिला है कि मैं बम्बई प्रान्तकी हद न छोडूं। जिस अफसरने मुझपर

  1. १.यह अनुच्छेद १२-४-१९१९ के लीडरसे लिया गया है।
  2. २. लाहौरसे ९ अप्रैलको जारी किया गया हुक्म इस प्रकार था : “चूँकि स्थानीय सरकारकी राय में यह विश्वास करनेके उचित कारण हैं कि मोहनदास करमचन्द गांधी, सुपुत्र – ने, जो बम्बई अहातेके अन्तर्गत काठियावादमें राजकोटके निवासी हैं, सार्वजनिक सुरक्षाके विरुद्ध काम किया है, इसलिए लेफ्टिनेंट गवर्नर, गवर्नर-जनरलकी कौंसिलकी पूर्वानुमतिसे आदेश देते हैं कि उक्त मोहनदास करमचन्द गांधी तुरन्त बम्बई लौट जाये और जबतक कोई नथा हुक्म नहीं मिल जाता तबतक बम्बई अहातेकी सीमामें ही रहें। पंजाबके माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नरको आज्ञासे अशगर अली संयुक्त सचिव"