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२०६. सन्देश : अहमदाबादकी जनताको



अप्रैल १३, १९१९

बाई अनसूयाबेन और मैं आज ही सुबह अहमदाबाद पहुँचे हैं। बाई अनसूयाबेनको गिरफ्तार किया ही नहीं गया था। मैं भी शुक्रवारके दिन तक बिलकुल स्वतन्त्र था और बम्बई गया था। हिरासतके अर्सेमें मुझे किसी किस्मकी कोई तकलीफ नहीं हुई; स्वयं मेरी दशा तो ऐसी थी जैसे मुझे स्वर्गिक आनन्द मिल रहा हो। रिहाईके बाद ही अहमदाबादकी घटनाओंकी बात सुनकर मुझे अत्यन्त दुःख हुआ। बेनका तो कलेजा मुँहको आ गया। हम दोनोंको बड़ी शर्म मालूम हुई। अब हम दोनों आप लोगोंसे मिलने आये हैं। आपसे एक-दो बातें करना जरूरी है, इसलिए मैं अभी कुछ नहीं कहूँगा। मैं यह भी चाहता हूँ, और आप सब भी चाहते होंगे कि मार्शल लॉ तुरन्त ही हटा दिया जाये। उसे हटवाना हमारे ही हाथ है। मैं आपको इसका रास्ता बतलाना चाहता हूँ। आपमें से जो भी आ सकें उनको सोमवारकी शामको चार बजे आश्रममें पहुँचना चाहिए। आश्रम आनेके लिए ऐसे मार्ग चुनिये जहाँ सेनाके दस्ते तैनात न हों। एक साथ दो या तीन व्यक्तियोंसे अधिक नहीं आने चाहिए। पुलिसके सभी आदेशोंका पालन किया जाना चाहिए। मेरा अनुरोध है कि आप सड़कोंपर किसी भी तरहका शोर न मचायें और यदि आप आश्रममें भी पूरी शान्ति रखेंगे तो मैं अपनी बात ज्यादा अच्छी तरह समझा सकूँगा। बहुत ही अच्छा हो यदि सभी दूकानदार अपनी दूकानें खोल लें और सभी मिल-मजदूर कामपर चले जायें। मैं अन्तमें यही कहना चाहता हूँ कि सत्याग्रहपर मुझे इतना अधिक भरोसा है कि यदि यहाँ और अन्य स्थानोंपर जो गलतियाँ की गई हैं वे न की गई होतीं, तो आज रौलट विधेयक रद हो चुका होता। ईश्वर आपको सुबुद्धि और शान्ति दे ।

[अंग्रेजीसे]

सोर्स मैटेरियल फॉर ए हिस्ट्री ऑफ द फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया, खण्ड २ (१८८५- १९२०), पृ० ७६३, ७६६-६७।