पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/२५६

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२०८. पत्र : जी० ई० चैटफील्डको



आश्रम
साबरमती
अप्रैल १४, [१९१९]

प्रिय श्री चैटफील्ड,[१]

मैंने कल कई लोगोंसे सुना कि फौजने एक-दो स्त्रियाँ और कुछ आदमी मार डाले हैं, और सो भी बिना किसी उचित कारणके। क्या आप मुझे कृपया सही तथ्य बतायेंगे? मैं इस बात के लिए भी बहुत ही चिन्तित हूँ कि आज कोई ऐसी अशोभनीय घटना न हो; मैं जानता कि मेरी तरह आप भी चिन्तित होंगे।

हृदयसे आपका,

महादेव देसाईके स्वाक्षरोंमें दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५३१) की फोटो-नकलसे।

२०९. पत्र : जे० एल० मँफीको

आश्रम
साबरमती
अप्रैल १४, १९१९

प्रिय श्री मैफी,

मैंने आपके पिछले पत्रकी प्राप्ति स्वीकार नहीं की; आशा है, आप इसे मेरी अशिष्टता न समझेंगे। सच तो यह है कि मैंने उस पत्रको आपके और अपनी उस मैत्रीके अनुरूप मानकर सँभालकर रखा है जो मैं आशा करता हूँ कि हमारे एक राय न होने और हमारे बीच दृष्टिकोणका भेद होते हुए भी हमेशा बनी रहेगी। मैं आपको पत्रकी पहुँच मात्र नहीं भेजना चाहता था। मैं चाहता था कि आपको पुनः लिखनेसे पूर्व मैं एक निश्चित स्थितिमें पहुँच जाऊँ और अब मैं पूर्णतः एक निश्चित स्थिति में पहुँच गया हूँ और मैंने अपने रहनेके लिए जो जगह चुनी है वहाँ असीम अराजकता है, लगभग बोल्शेविज्म जैसी। अंग्रेज स्त्री-पुरुषोंको अपने बँगले छोड़कर कुछ सुरक्षित घरोंमें जा रहना जरूरी ही मालूम हुआ है। यह मेरे लिए गहरे अपमान और खेदका विषय है। मैं देखता हूँ कि मैंने जनतामें सत्याग्रहकी समझको अनुचित रूपसे ऊँचा और घृणा और विद्वेषकी शक्तिको कम आँक लिया था। सत्याग्रहमें मेरा विश्वास यथावत् है।

  1. १. अहमदाबादके कलक्टर।