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पत्र : जे० एल० मैफीको

परन्तु मैं एक सामान्य प्राणी हूँ और किसी भी अन्य प्राणीकी भाँति भूल कर सकता, हूँ। मैं अपनी भूलको सुधार रहा हूँ । मैंने फिलहाल अपना कदम कुछ पीछे हटा लिया है। जबतक मुझे यह भरोसा नहीं हो जाता कि मेरे सहयोगी भीड़को सँभाल सकते हैं और उसे संयत रख सकते हैं तबतक मैं वादा करता हूँ कि मैं दिल्ली या पंजाबके अन्य हिस्सों में नहीं जाऊँगा । इसलिए इस समय मेरा सत्याग्रह मेरे अपने ही देशभाइयोंके विरुद्ध होगा। फिर भी मैं यह जरूर कहना चाहता हूँ कि मुझपर उन हुक्मोंको तामील करना भारत सरकारकी भयानक भूल थी । निश्चय ही वह मुझे इतनी अच्छी तरह तो जानती ही थी कि उसे ऐसी भूल नहीं करनी थी। मैं अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकता था और मैं दिल्ली या पंजाब उपद्रव कराने नहीं जा रहा था । जहाँ-कहीं भी मैं गया हूँ वहाँ प्रत्यक्षतः मेरी उपस्थितिका प्रभाव, संयतकारी और शामक हुआ है । मैं दिल्ली, लाहौर और अमृतसर शान्ति स्थापित करनेके उद्देश्यसे जा रहा था । और मैं दिल्ली और लाहौर तभी जाता जब मेरी कुछ शर्तें पूरी हो जातीं । यद्यपि अमृतसरकी घटनाएँ जहाँतक मैं देख पाता हूँ, सत्याग्रहसे और मेरी गिरफ्तारीसे सम्बद्ध नहीं है; फिर भी मुझे विश्वास है कि यदि मैं इन जगहों में पहुँच पाता तो वहाँ ये भयंकर घटनाएँ न घटतीं; और मैं समझता हूँ कि आप मेरे इस कथनसे सहमत होंगे कि यदि मुझपर वे हुक्म तामील न किये गये होते तो अहमदाबादमें जो उन्मादपूर्ण विस्फोट हुआ वह कभी न होता। इसलिए मैं यह सुझाव देता हूँ कि उन हुक्मोंको अब वापस ले लिया जाये । सही या गलत, ऐसा लगता है कि इस समय मुझे सारे भारतमें लोगोंका असीम स्नेह और आदर प्राप्त है। इन हुक्मोंको वापस न लेनेसे उनमें रोष उत्पन्न होगा । मैं चाहता था कि मेरे किसी वक्तव्य आदिसे उनका यह रोष और न बढ़े, अतः मैं इससे बचा हूँ और मैंने यह भी नहीं बताया है कि ये हुक्म कैसे थे और मुझपर किस तरह तामील किये गये थे । मैंने उन गलत बातोंका भी, जो समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हुई हैं, खण्डन नहीं किया और उन्हें नहीं सुधारा है । ये गलतबयानियाँ मेरी गिरफ्तारी का प्रभाव कम करनेके लिए की गई थीं ।

इन हुक्मोंके सम्बन्धमें इतना ही कहना है । मैं जानता हूँ कि आप मेरा यह आश्वासन स्वीकार कर लेंगे कि जबसे मैं बम्बई लाया गया हूँ और वहाँ रिहा किया गया हूँ तबसे मैंने पहले बम्बई में और फिर अहमदाबादमें व्यवस्था स्थापित करनेमें मदद ही की है । यहाँतक कि जब मैं यह पत्र लिखवा रहा हूँ तब भी मेरे बुलाये हुए लोग आश्रममें आ जा रहे हैं। यदि इस पत्रके साथ नहीं तो अलग लिफाफेमें दूसरी डाकसे, मैं आपको बम्बईको सभामें दिये गये अपने भाषणका पाठ[१] और आज यहाँ होनेवाली सभामें दिये जानेवाले भाषणका पाठ भेजनेकी आशा करता हूँ ।

मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि परिस्थितिके सम्बन्धमें मेरा क्या विचार है । मुसलमानोंमें जो जोश उमड़ रहा है वह हमेशा के लिए रोका नहीं जा सकता। वह किसी भी क्षण प्रचंड प्रवाहकी तरह फूट पड़ सकता है । और उनके इस आत्यंतिक असंतोषके परिणाम वर्तमान उपद्रवोंके मूलमें देखे जा सकते हैं । यह असंतोष कुछ वर्गों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह बिलकुल निश्चितरूपसे आम लोगों में व्याप्त है। मैं निवेदन करना

  1. १. देखिए " सत्याग्रह माला " - ३, ११-४-१९१९ ।