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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहता हूँ कि यदि राष्ट्रसंघने इस्लाम सम्बन्धी प्रश्नोंको शिक्षित मुसलमानोंके मतानुसार तय न किया तो उसका परिणाम अत्यंत विनाशकारी होगा। मेरा सुझाव है कि अली बन्धु अपनी राय देनेके लिए आमन्त्रित किये जा सकते हैं। सबसे अच्छी बात तो यह होगी कि अली बन्धु लंदन बुलाये जायें और उनकी सलाहका लाभ इंग्लैंडकी सरकारको दिया जाये । वे निहायत सच्चे मुसलमान हैं। वे स्वतन्त्र और योग्य हैं। अन्तमें उनकी राय और ऐसे अन्य मुसलमानोंकी राय ही आम मुस्लिम आबादीके बहुत बड़े हिस्सेपर असर डालेगी। मैं जिन मुसलमानोंसे मिला हूँ उन्हें यह बताने में हिचकिचाया नहीं हूँ कि मनमें असंतोष, दुर्भाव और अन्तमें घृणा रखकर हिंसाके तरीकोंका सहारा लेनेकी अपेक्षा सत्याग्रह के शान्तिपूर्ण और सही रास्तेपर चलना उनके लिए अधिक लाभप्रद रहेगा। सत्याग्रहमें मेरी श्रद्धा इतनी अधिक है कि मुझे आशा है मैं उसे एक ओर भारतके सभी वर्गों और जातियोंसे तथा दूसरी ओर सरकारसे अवश्य मनवा लूंगा; क्योंकि मेरे लिए सत्याग्रह जीवनका एक ऐसा नियम है जिसे हम सभी थोड़ा या बहुत, जाने या अनजाने, अपनी इच्छा के विरुद्ध भी आचरणमें लाते हैं।

मुझे अंतिम बात यह कहनी है कि रौलट कानून अब उस स्थितिसे निकल चुका है जिसमें उसके गुणावगुणपर विचार किया जा सकता था । मेरी रायमें आज भारतमें जो कुछ हो रहा है उस सबको देखते हुए यही वांछनीय लगता है कि ये कानून वापस ले लिये जायें। यदि सरकार भारतीयोंकी रायका, जो इतने स्पष्ट रूप से व्यक्त की जा चुकी है, खयाल करते हुए उन कानूनोंको वापस लेनेकी स्पष्ट घोषणा कर देगी तो उससे उसकी प्रतिष्ठा केवल बढ़ेगी ही। मैंने सोचा कि मुझे ये विचार आपतक पहुँचा देने चाहिए, फिर आप उनका जो चाहेंगे उपयोग करेंगे ही।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

टाइप की हुई अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५३४) की फोटो - नकलसे ।


२१०. भाषण : अहमदाबादकी सार्वजनिक सभामें[१]

अप्रैल १४, १९१९

भाइयो,

आज मैं विशेष रूपसे आप लोगोंसे ही कुछ कहना चाहता हूँ। अहमदाबादमें जो घटनाएँ पिछले पाँच दिनोंमें हुईं हैं, उनसे अहमदाबादकी बड़ी बदनामी हुई है। वे घटनाएँ मेरे नामपर हुई हैं, इसलिए मैं लज्जित हूँ। जो घटनाएँ हुईं, उनसे उनमें भाग लेनेवालोंने मेरा सम्मान नहीं, बल्कि मेरा अपमान किया है। ऐसा करनेके बजाय यदि वे मुझे खंजर भोंककर मार देते, तो मुझे इससे ज्यादा कष्ट न हुआ

  1. १. साबरमती आश्रम में हुई इस सभा में गांधीजीके इस गुजराती भाषणकी हजारों प्रतियाँ वितरित की गई थीं।