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भाषण : अहमदाबादकी सार्वजनिक सभामें

होता । मैं सैकड़ों बार कह चुका हूँ कि सत्याग्रहमें मारपीट नहीं की जा सकती, किसीपर जोर-जुल्म नहीं किया जा सकता, किसीके मालको नुकसान नहीं पहुँचाया जा सकता, आगजनी नहीं की जा सकती। परन्तु हमने तो सत्याग्रहके नामपर मकान जलाये, जोर-जुल्म कर हथियार ले लिये, जबरन रुपया ऐंठा, जबरदस्ती करके गाड़ियाँ बन्द कर दीं, तार तोड़ डाले, निर्दोष मनुष्योंको मारा, दूकानें और मकान लूट लिये । ऐसे कामोंसे में कैदसे तो क्या, फाँसीसे छूटता होऊँ तो भी ऐसे छुटकारेको पसन्द नहीं करूँगा । मैं साफ कह देना चाहता हूँ कि मेरा छुटकारा ऐसे रक्तपातसे नहीं हुआ। फिर यह निर्दय अफवाह भी अहमदाबादमें उड़ी कि पूज्य अनसूयाबेन गिरफ्तार कर ली गई हैं। इससे लोग और भी बिगड़े और उन्होंने ज्यादा उत्पात किया। ऐसा होनेसे पूज्य बहनका भी अपमान हुआ है। उनकी गिरफ्तारीके बहाने घोर कर्म हुए हैं।

इन कामोंसे लोगोंका कोई लाभ नहीं हुआ। उनसे हानि ही हुई है । जो सम्पत्ति जलाई गई, वह हमारी ही थी; ये मकान आदि हमारे ही खर्चसे फिर बनेंगे। इस समय दूकानें बन्द रहती हैं, इससे जो नुकसान हो रहा है, वह भी हमारा ही हो रहा है। शहरमें मार्शल लॉ जारी है, इसके कारण जो आतंक फैला हुआ है, वह इसी रक्तपातका परिणाम है। मार्शल लॉ जब-जब लागू होता है, तभी कुछ निर्दोष मनुष्योंके प्राण जाते हैं। ऐसा ही इस बार भी हुआ बताते हैं । ऐसा हुआ हो, तो उसका दोष भी उन घटनाओं पर ही है । इस प्रकार हम देख सकते हैं कि अहमदाबादमें हुई घटनाओंसे कुछ भी लाभ नहीं हुआ, इतना ही नहीं, सत्याग्रहको भारी नुकसान पहुँचा है। यदि मेरे पकड़े जानेके बाद लोगोंने केवल शांति रखकर आन्दोलन किया होता, तो अबतक या तो रौलट कानून उड़ गये होते अथवा उड़नेके करीब होते । अब यदि इन कानूनोंके रद होनेमें देर हो, तो जरा भी आश्चर्यकी बात न होगी । शुक्रवारके दिन जब मैं छूटा, तब मेरा यह इरादा था कि मैं रविवारको वापस दिल्लीकी तरफ चल दूं और गिरफ्तार होनेका प्रयत्न करूँ । इससे सत्याग्रहको अधिक बल मिलता । अब तो दिल्ली जानेके बजाय मेरा सत्याग्रह अपने ही लोगोंके विरुद्ध होगा और जैसे रौलट कानून रद करानेके लिए सत्याग्रह करके मृत्यु-पर्यन्त भी लड़नेका मेरा निश्चय है, वैसे ही जो रक्तपात हुआ, उसके सम्बन्धमें मुझे अपने ही लोगोंके विरुद्ध सत्याग्रह करनेका अवसर आ गया है । और यदि हम पूरी तरह शान्ति नहीं रख सकते, जान-मालकी हानि करना बन्द नहीं कर देते, तो मुझे अपने शरीरका बलिदान देकर भी अपनोंके विरुद्ध सत्याग्रह करना होगा। जबतक मुझे इतमीनान नहीं हो जाता कि अहमदाबादमें लोग फिर ऐसी भूल नहीं करेंगे, तबतक मैं जेल-यात्रा कैसे कर सकता हूँ ? जिन्हें सत्याग्रह में शरीक होना है, अथवा शरीक न होकर भी जिन्हें सत्याग्रहमें मदद देनी है, उन्हें हिंसात्मक कार्योंसे सर्वथा अलग रहना चाहिए। में दुबारा पकड़ा जाऊँ या मेरा कुछ भी हो जाये, तो भी सत्याग्रह करनेवाले या सत्याग्रहकी सहायता करने- वाले किसीकी जान-मालको नुकसान नहीं पहुँचा सकते । इस समय हमारे ऊपरसे विश्वास उठ जानेके कारण अंग्रेज स्त्री-पुरुष अपने-अपने बँगले छोड़कर शाही बागमें रहते हैं । हम विचार करें, तो यह हमारे लिए बड़ा लज्जास्पद है । यह स्थिति जितनी जल्दी समाप्त