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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो सके, कर देनी चाहिए। हमें अंग्रेजोंको भी अपना भाई समझकर अभयदान देना ही चाहिए। इसके बिना सत्याग्रह दुराग्रह है।

इसमें आपके और मेरे दो स्पष्ट कर्त्तव्य हैं । एक कर्त्तव्य तो यह है कि हम आइन्दा कोई दुष्ट कार्य न करनेका संकल्प करें और दूसरा, जो हो गये हैं, उनके लिए पश्चात्ताप, प्रायश्चित्त करें । जबतक हम पश्चात्ताप नहीं करते, अपनी भूल महसूस नहीं करते और उसे सार्वजनिक रूपमें स्वीकार नहीं करते, तबतक हम अपने आचरणमें सुधार न कर सकेंगे। पहला प्रायश्चित्त तो यह है कि जिन्होंने जबरन हथियार छीने हैं, वे सब हथि- यार वापस दे दें। यदि आप सबको सचमुच पश्चात्ताप हुआ हो, तो आप सब कमसे कम आठ आने और अधिक से अधिक जितना देना हो, यहाँ जमा करा दें। इस रुपयेका उपयोग उन लोगोंके परिवारोंके सहायतार्थ होगा, जो हमारे दुष्कृत्योंसे मारे गये हैं। इसमें हम कितना भी रुपया क्यों न दे दें, हमने जिस द्वेष और वैरका परिचय दिया है,उसका मार्जन नहीं हो सकता । फिर भी थोड़ा-बहुत भी चन्दा देना हमारे पश्चात्ताप प्रकट करनेकी निशानी होगी । मेरी यह आशा और प्रार्थना है कि यह कहकर कि मैंने इस घोर कर्ममें भाग नहीं लिया, एक भी आदमी रुपया देनेसे बच नहीं निकलेगा, क्योंकि जिन्होंने इस कार्य में भाग नहीं लिया, वे सब यदि हिम्मत और बहादुरीसे उसे बन्द करनेको निकल पड़ते, तो रक्तपात करनेवालोंकी हिम्मत टूट जाती और उन्हें अपने घोर कर्मका तुरन्त भान हो जाता। मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि हमने डरके मारे जो रुपया दिया, वह न दिया होता और मौतका भय छोड़कर हम मकानोंका बचाव करनेमें लग जाते और निर्दोष मनुष्योंकी रक्षामें जुट जाते, तो हम वैसा कर सकते थे। मैं स्त्री-पुरुष दोनोंमें ऐसा साहस देखना चाहता हूँ । जबतक ऐसा साहस नहीं आ जाता, तबतक दुष्ट मनुष्य हमें हमेशा अपनी दुष्टतासे डराकर अपनी दुष्टतामें भाग लेनेके लिए बाध्य करते रहेंगे। इसमें तो हम वीर्यहीन अर्थात् धर्महीन भी बन जाते हैं। वीरताके बिना अपने धर्मकी रक्षा हो ही नहीं सकती। इसलिए जो पाप हुए हैं, उनमें हम सब अपनेको हिस्सेदार मानें और सभी स्वल्प प्रायश्चित्तके रूपमें कुछ-न-कुछ चन्दा दें। सभी जातियाँ अपना-अपना चन्दा वसूल करके इन एक-दो दिनोंके भीतर अपनी-अपनी जातिके मुखियोंकी मारफत यहाँ भेज सकती हैं। मेरी यह भी सलाह है कि यदि आप कर सकें, तो इस महान् पापके लिए चौबीस घंटेका उपवास भी रखें। यह उपवास सब व्यक्तिगत रूपमें रखें। इसके लिए झुण्ड बनाकर स्नानादि करने की जरूरत नहीं, क्योंकि फिलहाल सामूहिक रूपमें लोगोंका निकलना उचित नहीं होगा ।

यह तो मैंने आप सब लोगोंको सलाह दी, यह सुझाया कि आप क्या प्रायश्चित्त करें। परन्तु मैं, जिसपर आपसे करोड़गुनी अधिक जिम्मेदारी है, क्या प्रायश्चित्त करूँ ? सत्याग्रह सुझानेवाला मैं आप लोगोंके बीच यहाँ चार सालसे रहता हूँ। मैंने अहमदाबादकी सेवामें कुछ विशिष्ट भाग लिया है। अहमदाबादके लोग मेरे विचारोंसे बिलकुल अपरिचित नहीं हैं। मुझपर जो आरोप है कि मैंने बिना विचारे सत्याग्रहकी लड़ाई में हजारों मनुष्योंको डाल दिया, वह कुछ हद तक -- अलबत्ता, कुछ हद तक जेड- सही माना जायेगा । यह आलोचना हो सकती है कि लड़ाई न हुई होती, तो यह मारकाट न होती। ऐसे दोषोंके लिए एक प्रायश्चित्त तो, जो मेरे जैसेके