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भाषण : अहमदाबादकी सार्वजनिक सभामें

लिए असह्य लगता है, कर देना पड़ा है और मुझे घावसे भी ज्यादा मैं कर चुका हूँ। अर्थात् फिलहाल मुझे दिल्ली जाना स्थगित सत्याग्रहका स्वरूप सीमित करनेकी सलाह देनी पड़ी है । यह दुःखद प्रतीत हुआ है । फिर भी यह प्रायश्चित्त काफी नहीं है। इसलिए मैंने तीन दिनका अर्थात् बहत्तर घंटेका उपवास करनेका निश्चय किया है । मैं चाहता हूँ कि इस निश्चयसे किसीको दुःख न हो। आपके लिए चौबीस घंटेका उपवास जितना कठिन है, उससे मेरे लिए बहत्तर घंटेका कम कठिन है। मैंने उतना ही प्रायश्चित्त लिया है, जितना मुझसे सहन हो सकता है। मैं इतना कष्ट उठाऊँगा, इसपर यदि आपको जरा भी दया आती हो, तो उस दयाका एक ही परिणाम में मानता हूँ और वह यह कि आइन्दा ऐसे घोर कार्य में कोई भी अहमदाबादी भाग न ले । सच मानिये कि रक्तपात करके, मनुष्योंको सताकर, हम स्वराज्य नहीं ले सकेंगे, भारत का कोई लाभ नहीं कर सकेंगे। मैं स्वयं तो इस रायका हूँ कि यदि भारतको उनकी हत्या मारकाटसे [ही] स्वराज्य मिलनेवाला हो, यदि अंग्रेजोंसे द्वेष रखकर,करके ही हम अपने दुःखका निवारण कर सकते हों,तो मैं खुद तो इस प्रकार मिलने वाला स्वराज्य नहीं चाहता और जो भी दुःख हो, उसे सहन कर लेना चाहता हूँ।

सत्यके नामपर अहमदाबाद मारकाट करे, ऐसी स्थितिमें जीना में कैसे चाहूँगा? गुजरातको कविने 'गर्वीला गुजरात' विशेषण दिया है। उस गुजरातकी राजधानी अहमदाबाद है। वहाँ धार्मिक हिन्दू और मुसलमान रहते हैं। उस राजधानीमें घोर कर्म हों, यह तो समुद्रमें आग लगने जैसा हुआ। उसे कौन बुझा सकता है? इस आगमें मेरे जैसेको तो भस्म हो जानेकी जरूरत है। इसलिए आप सबसे अनुनयपूर्वक माँग करता हूँ कि अपने तीन दिनोंके उपवासके मैं जो परिणाम चाहता हूँ, उनमें आप सहायक बनिये। जिस प्रेमके कारण आपने होश भूलकर अकार्य किये हैं, वहीं अब आपको [अपने कर्त्तव्यके प्रति ] जगाये। और यदि वह प्रेम कायम रहे, तो यह सावधानी रखिये कि कहीं ऐसा उपवास करनेकी नौबत न आने पाये,जिससे मेरा देहपात हो जाये।

मुझे लगता है कि जो काम अहमदाबादमें हुए, वे युक्तिपूर्वक हुए हैं। ऐसा मालूम होता है कि उनके पीछे कोई योजना रही है। इसलिए मैं निश्चित मानता हूँ कि उनमें किसी पढ़े-लिखे आदमी या आदमियोंका हाथ होना चाहिए। मैं साहस-पूर्वक कहूँगा कि वे पढ़े हुए भले ही हों, परन्तु उन्होंने विचार करना नहीं सीखा है। उनकी बातोंमें आकर हमने अकार्य किये हैं। मैं सलाह देता हूँ कि भविष्य में इस तरह बातोंमें मत आना। मैं तो जो ऐसे आदमी हों, उनसे भी अनुरोध करूँगा कि वे बार-बार विचार करें। उनसे और आप सबसे मैं अपना 'हिन्द स्वराज्य' पढ़ने की सिफारिश करता हूँ। अब तो मुझे पता लगा है कि हम 'हिन्द स्वराज्य' छाप सकते हैं; उसमें कानूनका कोई भंग नहीं होता।

मिलोंके कताई-विभागके मजदूर कुछ दिनसे हड़ताल किये हुए हैं। उन्हें मैं सलाह देता हूँ कि वे तुरन्त कामपर चले जायें। कामपर चले जानेके बाद जो भी माँग करनी हो सो की जाये और न्यायके तरीकेसे जो वृद्धि प्राप्त की जा सके, सो की जाये। मालिकोंपर जोर-जुल्म करके वृद्धि कराना चाहोगे, तो अपने पैरोंपर