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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं सरकारसे इस बातपर विश्वास करनेके लिए कहता हूँ कि यह उत्तेजनापूर्ण विस्फोट किसी भी प्रकार सत्याग्रहका परिणाम नहीं था । वह उन कारणोंका परिणाम था जो सत्याग्रह आन्दोलनके प्रारम्भसे पूर्व ही पैदा हो चुके थे । यह उस भयानक भूलका परिणाम भी था जो शान्तिपूर्ण उद्देश्यसे दिल्ली जाते वक्त मुझे गिरफ्तार करके की गई थी । मुझे अपने सार्वजनिक कार्यके दौरान ऐसा एक भी अवसर याद नहीं आता, जब उपद्रवी तत्त्वोंपर मेरी उपस्थितिका शामक प्रभावके अतिरिक्त किसी अन्य प्रकारका प्रभाव हुआ हो । मेरी गिरफ्तारीसे सभी असन्तुष्ट शक्तियोंको इकट्ठा होनेका अवसर मिल गया और जो लोग मेरे प्रति व्यक्तिगत स्नेहके कारण मेरी गिरफ्तारीपर हृदयसे शोक कर रहे थे, वे भी अनजाने उन गैरकानूनी कार्रवाइयोंमें खिंच आये। मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि लगभग वे सभी लोग जो सत्याग्रही माने जाते हैं, अपने जीवनको खतरेमें डालकर यह कोशिश कर रहे थे कि भीड़का उन्मादपूर्ण रोष किसी हद तक दब जाये । उन्हींके कामसे शायद यह हुआ कि भीड़ने और अधिक ज्यादती नहीं की; यद्यपि जो कुछ हुआ है, वह बहुत बुरा है । सम्भव है मेरा यह निष्कर्ष गलत हो; परन्तु इसके बारेमें कोई सन्देह नहीं है कि सत्याग्रहियोंने यथाशक्ति पूरा प्रयत्न किया था कि वह दुःखजनक घटना न होने पाये । परन्तु हम लोग अभी मुट्ठी भर ही तो हैं। समय आनेपर ही यह बात सिद्ध होगी कि भारतको और संसारको भी सत्याग्रहसे अधिक संयमित करनेवाली और कानून तथा व्यवस्थाको कायम रखने में सहायक कोई दूसरी चीज प्राप्त नहीं हो सकती । केवल सविनय अवज्ञासे ही सच्चा और मानवोचित कानून पालने का भाव जग सकता है। एक सत्याग्रहीके नाते मेरा कर्त्तव्य इस समय यह है कि मैं ऐसा कोई भी काम न करूँ जो आगमें ईंधनका काम करे । इसलिए मैंने अहमदाबादकी दुःखद घटनाका सच्चा विश्लेषण तक नहीं किया है । भारतके अन्य हिस्सोंकी घटनाओंके बारेमें में कुछ नहीं कहना चाहता । मैंने जिन अन्य कारणोंका उल्लेख किया है वे तीन हैं। पहला और सबसे प्रमुख कारण है मुसलमानोंमें गहरा असन्तोष। उन्हें यह आशंका है कि शान्ति सम्मेलन में इस्लाम सम्बन्धी प्रश्नोंका ठीक निपटारा नहीं किया जायेगा । मैं इस विषयपर कुछ अधिकारपूर्वक कह सकता हूँ, क्योंकि मैंने मुसलमानोंकी भावनाओंको निश्चित रूपसे जाननेकी बहुत कोशिश की है । मैं लगभग सारे भारतमें ऊँचे और नीचे तबकेके मुसलमानोंके बीच गया हूँ और एक हिन्दूके नाते मैंने इसे अपना कर्त्तव्य माना है कि उनकी स्थितिको समझू और उनके दुःखोंमें उनका साथ दूँ। दूसरा कारण है यह आशंका,अलबत्ता धुंधली, कि जो सुधार मिलनेवाले हैं, वे नाममात्रके होंगे। और तीसरा कारण है,जनताने एक होकर जो मत व्यक्त किया, उसको चुनौती देते हुए जबरदस्ती रौलट कानून पास करनेके कारण उत्पन्न तीव्र रोष।

मैं मानता हूँ कि लापरवाह, अनजान और गैरजिम्मेदार वक्ताओंने बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बातें कीं, किन्तु मेरा सार्वजनिक जीवनका २५ वर्षका अनुभव है, और मैं जानता हूँ कि यदि अतिशयोक्तियोंके पीछे कोई बड़ा कष्ट न हो तो उनसे ऐसा रोषपूर्ण विस्फोट नहीं होता जैसा हमने अहमदाबादमें देखा।