पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/२६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३७
पत्र: सर स्टैनली रोडको

और पृथ्वीपर गिर पड़ा; एक दूसरेके प्राण खतरे में हैं । वह बहुत ज्यादा जख्मी है। किन्तु फिर भी मेरी समझमें,अहमदाबादके लोगोंको,जिस नृशंसताके साथ भीड़ने सम्पत्तिको नष्ट किया, सार्जेंट फेजरको काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया और अन्य अनेकों ज्यादतियाँ कीं, उसके बाद इन दुःखद घटनाओंके बारेमें शिकायत करनेका कोई अधिकार नहीं है । इस बातकी काफी सम्भावना है कि वे अंग्रेज लड़के- मैं उन्हें लड़के ही कहता हूँ क्योंकि वे लड़के-जैसे दिखाई देते थे जो मार्शल लॉ के दौरान पिकेटोंकी हैसियतसे तैनात थे, मौकेपर यह समझकर आये हों कि बम्बईसे आई हुई सेनाको, जिसके वे सदस्य हैं, मार डालनेके लिए एक कुचक्र रचा जा चुका है। मेरा इशारा नडियादके पास रेलको पटरीसे उतार देनेकी घटनाकी ओर है । अहमदाबादके लोगोंसे बदला लेनेकी धुनमें सही-गलतकी पहचान न करते हुए मुमकिन है उन्होंने बहुत खुलकर अपनी राइफलोंका प्रयोग किया हो। मैं इस गोली काण्डका जिक्र यह साफ करनेके लिए ही कर रहा हूँ कि अहमदाबादके लोगोंको पर्याप्त दण्ड मिल चुका है। अब आगे और दण्डात्मक कार्रवाई न की जाये और कोई अभियोग न लगाये जायें

अब मैं इस अशान्तिके कारणोंपर आता हूँ । मैंने १०० से ऊपर लोगोंसे खुद बातचीत की है। सत्याग्रह आश्रम में रहनेवाले मेरे सहयोगियों और शहरमें निवास करनेवाले मेरे साथियोंमें से प्रत्येक, अधिक नहीं तो इतने ही लोगोंसे, बात कर चुका हूँ और मैं इस नतीजेपर पहुँचा हूँ कि इन ज्यादतियोंसे सत्याग्रहका जरा भी सम्बन्ध न था । अर्थात् जनताके बिगड़ उठने और मारकाट मचानेका कारण, जैसा कि आरोप है, लोगोंमें अवज्ञा-भावनाका भरा जाना नहीं था। इन सात सप्ताहोंमें, जिस अवधि में सत्याग्रह आन्दोलन चलता रहा है, किसी भी अंग्रेज व्यक्तिके प्रति दुर्भावको प्रोत्साहन देनेवाला एक भी शब्द नहीं कहा गया और मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि जब कभी मैंने लोगोंके बीच भाषण दिया, जनतामें गम्भीरताका संचार हुआ और अंग्रेजोंके प्रति उनके रुखमें तथा उन भारतीय नेताओंके प्रति भी जिनकी नीति वे पसन्द नहीं किया करते थे, परिवर्तन हुआ । परन्तु मेरा मुख्य काम तो उन लोगोंके साथ निजी बातचीत करके सम्पन्न होता है, जो मैं जहाँ जाता हूँ, वहाँ मुझसे मिलने आया करते हैं। ब्रिटिश प्रशासनके विरुद्ध लोगोंके दिलोंमें भरी हुई रोषपूर्ण भावनाएँ तो मेरी नजरमें जरूर आई हैं। मैंने यह भी देखा है कि ये रोषपूर्ण भावनाएँ सामान्य शासनके प्रति न रहकर ब्रिटिश-प्रशासकोंके प्रति हो गई हैं। गम्भीर रूपसे सवाल करते हुए मैंने देखा कि वे अपनी भूल कुबूल करने लगे हैं। कुछ ऐसी घटनाएँ याद आ रही हैं कि जिनमें लोग बद्दुआएँ देने आये थे किन्तु जब लौटे तो ओठोंपर दुआएँ न सही, मनमें अंग्रेजोंके प्रति कोई वैर-भावना लेकर नहीं गये । वैसे मैंने देखा कि लोगों के दिलोंमें विद्रोह तो सर्वत्र समाया हुआ है-और मुझे यह समझानेमें बहुत ही कठिनाई हुई कि कानून व अनुशासनकी लगातार अवहेलना करते रहनेकी आदतको वशमें करके उसके स्थानपर ऐसे अनुशासनपूर्ण और ईमानदारीसे भरी हुई सविनय अवज्ञाको लाने की जरूरत है जिसका परिणाम स्वयं कष्ट सहन तक सीमित रहना होता है, कानून बनानेवालों या अन्य किसीकी जान या जायदादको नष्ट करना नहीं । अतः कानून Gandhi Heritage Portal