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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विहीनताकी भावना तो वहाँ पहले ही थी। सत्याग्रहकी भावनाको,अर्थात् आत्मसंयमकी भावनाको,इतना समय नहीं मिल पाया था कि वह लोगोंपर अपना प्रभाव डाल सकती;और इतनेमें ही भारत सरकारने मुझपर वह हुक्म जारी करके मुझे गिरफ्तार कर लिया;यह भयंकर भूल वह कर बैठी।असन्तोषकी शक्तियाँ कदापि दुर्बल न थीं। वे इस प्रकार हैं (१)इस्लामपर प्रभाव डालनेवाले प्रश्नोंके सम्बन्धमें प्रत्येक मुसलमानका दिल कटुतासे भरा हुआ है और वह इस मामलेमें इंग्लैंडपर बिलकुल विश्वास नहीं करता। प्रत्येक श्रेणीके मुसलमानोंका हिन्दुओंके सम्पर्क में आना महत्त्वपूर्ण है और उपद्रव जहाँ-कहीं भी हुए हैं,उनके पीछे जैसा कि पूरी तरह स्पष्ट है, मुसलमानोंकी मदद रही है।(२)लोगोंको सिखाया गया है कि आनेवाले सुधारोंके प्रति अभीसे अविश्वासकी भावना रखने लगें। जनता अब मूढ़ नहीं रही है,वह परिस्थितिकी सामान्य जानकारी रखती है।(३) रौलट कानून द्वारा उत्पन्न आतंक और जनताकी रायको पूरी तरहसे ठुकरा दिया गया है। मैं खुले दिलसे स्वीकार करता हूँ कि रौलट अधिनियमकी सम्भावनाओंके बारेमें अज्ञानसे और कहीं-कहीं जानबूझकर बहुत ज्यादा अतिशयोक्ति की गई है। परन्तु सब बातोंपर गौर कर लेनेके पश्चात् यह बात माननी ही होगी कि लोगोंके दिलोंमें एक ऐसी बात घर किये हुए है कि जो मेरी रायमें रौलट कानूनको स्वीकार्य बनाना असम्भव कर रही है। क्या आपके ध्यानमें यह कभी नहीं आया कि कानूनके परिचय स्वरूप लिखी गई भूमिकामें संशोधन करना तनिक भी महत्त्वपूर्ण नहीं है? सर विलियम विन्सेंटने यह ठीक ही कहा कि कानूनकी भावना यह है कि वह केवल उन्हीं मामलोंमें अमलमें लाया जाये जहाँ अराजकतापूर्ण अपराध किये जा रहे हों। मगर अमुक काम अराजकतापूर्ण अपराध है, इसका निर्णायक कौन हो? निर्णायक होगी कार्यकारी सरकार और क्या कार्यवाहक अफसरोंने हमेशा ऐसे मामलोंपर निर्णय करनेमें यही तरीका नहीं अपनाया है कि खुफिया पुलिसका एक अदना सा अधिकारी अपने से बड़े अधिकारीको इस आशयकी एक रिपोर्ट पेश करता है कि अमुक स्थानपर अराजकतापूर्ण अपराधका अस्तित्व है और वह अधिकारी उसकी तसदीक कर देता है। तब सी० आई० डी० का मुख्य अधिकारी इसके आधारपर अपनी रिपोर्ट बनाता है और असाधारण रूपसे निर्भीक, शायद ही कोई ऐसा होम मेम्बर होगा जो सी० आई० डी० के बड़े अफसरकी रिपोर्टको गलत ठहराये। इसलिए स्वाभाविक है कि वह तथाकथित अराजकतापूर्ण उपद्रवोंके क्षेत्रमें कानूनके अमलकी विज्ञप्ति प्रकाशित करनेका आदेश दे देता है। कानूनका स्वरूप उग्र है, इस बातपर किसीने आपत्ति नहीं की। परन्तु मैं इस मुद्देको अधिक तूल देकर पत्रको अधिक लम्बा नहीं बनाऊँगा । ये ऐसे कारण हैं जिनके परिणामस्वरूप हिंसाके उग्र कार्य हुए बिना नहीं रह सकते थे। मैं सिर्फ यही कह सकता हूँ कि सत्याग्रहने उनपर रोकथाम की; फिर वह बहुत थोड़ी ही क्यों न रही हो । यह स्पष्ट है कि अहमदाबाद और वीरमगाँवकी दु:खद घटना हरगिज न होने पाती, यदि मुझपर वे हुक्म जारी न किये गये होते, और फिर उनके आधारपर मेरी गिरफ्तारी न की गई होती। बड़े पैमानेपर प्रदर्शन इसलिए नहीं हुए कि सत्याग्रह आन्दोलन खतरे में था वरन् इसलिए हुए कि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति मैं था-- मेरे प्रति लोगोंका प्रेम इतना अन्धा है ।