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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और उन्हें यथाशक्ति सहायता दें। मुझसे पूछा गया है कि यह रुपया किन लोगोंके काम आयेगा । जिन लोगोंको माली नुकसान हुआ है, ऐसा लगता है कि उनके नुकसानकी भरपाई तो हम नहीं कर सकेंगे । इसलिए हम मृत और घायल हुए लोगोंके परिवारोंको थोड़ी-बहुत मदद देंगे। उनमें दो-तीन अंग्रेज भाई हैं, उनके कुटुम्बोंकी सहायता करना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है, क्योंकि उनकी मृत्यु हमारे हाथों हुई है । ऐसा करनेके लिए हमारे पास कोई बहाना नहीं था। ये मौतें केवल वैर-भावसे ही हुई हैं । अब यदि हमें सच्चा पश्चात्ताप हो, तो हमारा फर्ज है कि हम उनके परिवारोंकी सहायता करें। यह तो हमारा छोटेसे- छोटा प्रायश्चित्त है । हमारे जो भाई मारे गये हैं उनमें से अधिकांश बिलकुल निर्दोष थे, यह मैं देख सका हूँ। घायल होनेवालोंमें मैंने कुछ दस-बारह बरसके लड़के देखे । इन सबको मदद देना हमारा दूसरा कर्त्तव्य है । वीरमगाँवसे मेरे पास एक मनुष्य आया, उसने अपने दो भाइयोंकी मृत्युकी बात कही। ऐसे शायद और भी मामले आयें। यदि वीरमगाँवके लोग चन्दा दें, तो हम इन लोगोंकी सहायता भी कर सकते हैं । न दें, तो ऐसा लगता है कि हम मदद करनेमें असमर्थ होंगे ।

कुछ भाइयोंकी यह मान्यता है कि इस प्रकार आतंक फैलाकर, सम्पत्ति आदिको जलाकर, मनुष्योंको सताकर हम अपने अधिकार प्राप्त कर सकते हैं । सत्याग्रहमें तो यह माना जाता है कि ऐसा करनेसे हक मिलें भी तो उनका त्याग करना चाहिए। मैं स्वीकार करता हूँ कि जिस समय दोनों पक्ष पशुबलको माननेवाले होते हैं, तब जो ज्यादा जोर लगा सकता है, वह कुछ हद तक अपने सोचे हुए ध्येयको प्राप्त कर सकता है । मेरा तीस वर्षका अनुभव यह बताता है कि इस तरीकेसे उद्देश्यकी प्राप्ति करने वाले व्यक्तिको अन्तमें कभी लाभ नहीं होता । परन्तु इस विषय में भले ही दो मत हों, लेकिन इसमें तो दो मत हरगिज नहीं हैं कि पशुबलमें हम सरकारसे बहुत कम हैं। उनके शस्त्रबलके सामने हमारे पशुबलकी कुछ भी बिसात नहीं। इसलिए मैं साहस पूर्वक कहना चाहता हूँ कि जो हमें ऐसा बल-प्रयोग करनेकी सलाह देते हैं वे भूल करते हैं और उनकी सलाह हमें कभी नहीं माननी चाहिए। इस प्रकार लौकिक दृष्टिसे विचार करते हुए हमारे पास एक ही वस्तु है और वह है सत्याग्रह अर्थात् धर्मबल । धर्मबल केवल सहनशक्तिसे ही आ सकता है। दूसरेको दुःख देकर पीड़ित करके, मारकर धर्मवृद्धि नहीं हो सकती। यदि हममें सचमुच में धर्मवृत्ति होती, तो अहमदाबादमें हुई घटनाएँ कभी घटित ही न होती । ऊधमी व्यक्ति दंगा-फसाद करें, तो उन्हें रोकना भी हमारा काम है । अहमदाबादके स्त्री-पुरुषोंमें वीरता आ जाये, तो दंगाई भी शान्त हो जायें। दंगाइयोंको पशुबलसे वशमें करनेकी अपेक्षा धर्मबल अर्थात् सत्याग्रह द्वारा काबूमें करना स्पष्टतः बहुत बड़ी बात है । अहमदाबादके उपद्रवसे लाभ तो बिलकुल नहीं हुआ, यह भी हमने देख लिया। अपनी रिहाईके सम्बन्धमें मैं कह चुका हूँ कि उसका इन उपद्रवोंसे कोई सम्बन्ध नहीं । उपद्रव १० तारीखको शुरू हुए। मुझे बम्बई में रिहा करनेका निश्चय ९ तारीखको हुआ । इसलिए उस निश्चयका उपद्रवोंके साथ कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता। फिर जिनका सत्याग्रहमें विश्वास है, वे तो मुझे रिहा करवानेके लिए ऐसा उपद्रव कर ही नहीं सकते । इस प्रकार हम देखते हैं कि उपद्रवसे कुछ भी लाभ नहीं हुआ ।