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सत्याग्रह माला - ४

अब उससे हुई विशेष हानियोंपर विचार करें । [ जो ] दफ्तर जलाये गये, वे भी हमारे थे, यह मैं सोमवारको याद दिला चुका हूँ । परन्तु उनपर हमारा अप्रत्यक्ष स्वामित्व है और उन्हें फिरसे बनानेके लिए भी हमें खास तौरपर रुपया नहीं देना पड़ता, इसलिए हम कह सकते हैं कि इसमें क्या हुआ ? तार-घर बन्द हो जानेसे हमारे व्यापारको नुकसान पहुँचा है, उसका भी कदाचित् हमारे मनपर असर न हो । परन्तु विद्यार्थियोंका मण्डप[१] जला दिया, इसका क्या अर्थ, यह जरा देखें । मैं यह सुनता हूँ कि इसे किसी ठेकेदारने बनवाया था । वह सम्पत्ति उस ठेकेदारकी थी । उसका मूल्य लगभग १८,००० ) था । यह रुपया ठेकेदारको कौन दे ? जरा सोचिए, उसे कैसा लग रहा होगा ? उसे रुपया चुकानेका, जलानेवालोंने तो विचार किया ही न होगा। मुझे खबर मिली है कि बहुत-सा जेवर सबूती मालके रूपमें अदालतकी तिजोरीमें था । उसकी कीमतका अन्दाज कोई ५०,०००) लगाता है, कोई इससे भी ज्यादा लगाता है । उस जेवरके सभी मालिकोंका हमें पता नहीं है । वे यह जेवर खो बैठे हैं। सरकार तो वापस नहीं देगी, और देगी भी तो हमारे रुपयेसे ही देगी । गरीब निर्दोष लोग जो अपने जेवर गँवा बैठे हैं, वे तो कदाचित् सरकारके पास जायेंगे भी नहीं । रा० ब० बुलाकीदासका माल उनके घरसे चुन-चुनकर निकाला गया और उसे जला दिया गया । यह कैसा इनसाफ ? मुझसे यह कहा गया है कि राय बहादुरकी कारगुजारियाँ अच्छी नहीं, वे लोगोंको सताते हैं । मुमकिन है ऐसा हो । परन्तु क्या इसलिए ऐसे अधिकारियोंकी सम्पत्ति हम जला डालें ? इस प्रकार लोग अपने हाथमें न्याय ले लें, तो शान्ति और सुरक्षाका वातावरण नष्ट हो जायेगा और लोग सदाके लिए केवल भय और आशंकाकी स्थितिमें ही रहेंगे। किसी भी व्यक्तिको किसी भी अविकारीका कार्य अत्याचारपूर्ण लगे और इससे उसे उक्त अधिकारीके जानमालको नुकसान पहुँचानेका हक प्राप्त हो जाये, तो एक भी अधिकारी सही सलामत नहीं रह सकता । जिस देशकी ऐसी स्थिति हो, वह देश सुधरा हुआ नहीं कहलाता और उसमें सभी लोग भयभीत दशामें रहते हैं । वीरमगाँवमें अव्वल कारकुनको जिन्दा जला दिया गया, यह कितना अधम कार्य है। उसने क्या अपराध किया था ? अथवा किया था, तो उसे नौकरीसे अलग करानेकी हमारी हिम्मत क्यों न हुई? निरपराध अंग्रेज सार्जेंट फेजर एक भारतीयके घरमें शरण लिए हुए था। उसे वहाँसे बाहर निकाला गया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये। इससे भारतको क्या फायदा हो सकता है ? [ इसका ] इतना परिणाम तो सामने आ ही चुका है कि हमारे और अंग्रेजोंके बीच वैरभाव बढ़ गया है, और कुछ निर्दोष व्यक्तियोंकी जानें चली गई हैं। उपद्रवी लोगोंकी संगति करके, उनकी मदद लेकर हक हासिल करनेकी कोशिशका एक ही नतीजा हो सकता है; वह यह कि प्रयत्न सफल हो जाये तो जो अधिकार प्राप्त हों, उन अधिकारोंको हम उपद्रवी लोगोंकी शर्तपर ही रख सकते हैं। इस प्रकार मिले हुए हक, हक नहीं, परन्तु हमारी गुलामीकी निशानी हैं। अहमदाबाद और वीरमगाँवमें जो

  1. १. इसी पत्रके अंग्रेजी संस्करणसे मालूम होता है कि यह कॉलेजोंके विद्यार्थियोंकी परीक्षा के लिए बनाया गया पण्डाल था