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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुआ, वह हमारी बहादुरीका सूचक नहीं है। उससे किसी भी प्रकार हमारी मर्दानगी साबित नहीं हो सकती। उससे तो हमें केवल शर्मिन्दा होना पड़ा है । जनताके कार्यको धक्का पहुँचा है । सत्याग्रहको सीमित करना पड़ा है। इस चित्रको ठीक वैसा ही चित्रित करनेमें मेरा हेतु यही बतानेका है कि किस तरह सहस्त्रों मनुष्य, जो ऐसा रक्तपात कभी पसन्द नहीं करते, वे विवश हो दीन बनकर बैठे रहे और इस उपद्रवको सहन करते रहे। इससे यह विदित होता है कि हममें इस समय धर्म और सत्यका सच्चा बल नहीं रहा और इसलिए मैंने कहा है, सत्याग्रह के सिवा भारतका कभी छुटकारा नहीं होगा । यह सत्याग्रह क्या है, इसे मैं दूसरी पत्रिकाओंमें यथाशक्ति बता- नेका प्रयत्न करूँगा । मैं प्रत्येक भाई और बहनसे अपेक्षा करता हूँ कि वे इन पत्रि- काओंको खूब ध्यानसे पढ़ेंगे, समझेंगे, समय-समयपर विचार करेंगे और उनमें दिये गए सुझावोंपर अमल करेंगे ।

मो० क० गांधी

गांधी स्मारक निधिमें सुरक्षित कर्नाटक प्रिंटिंग प्रेस, बम्बई द्वारा मुद्रित और एस० जी० बैंकर, ७२, अपोलो स्ट्रीट, बम्बई द्वारा प्रकाशित मूल अंग्रेजी पत्रकसे ।

सौजन्य : एच० एस० एल० पोलक

२१६. पत्र : जी० ई० चैटफील्डको

आश्रम
अप्रैल १६, १९१९

प्रिय श्री चैटफील्ड,

आपके पत्रके लिए धन्यवाद । उसके अन्तिम अनुच्छेदमें[१]आपने जो कहा है उसमें वजन है और मैं उसे स्वीकार करता हूँ । आप जैसा चाहते हैं वैसा ही किया जायेगा ।

मो० क० गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५४२) की फोटो - नकलसे ।

  1. १. १६-४-१९१९ के पत्रका अन्तिम अनुच्छेद इस प्रकार था :" जैसा कि आपके दूसरे पत्रसे मुझे ज्ञात हुआ है लोगोंको कुछ शिकायतें हैं । यदि ऐसा है तो क्या आप कृपया उन्हें सीधा मेरे पास भेजने को कहेंगे? मैं इतना अधिक व्यस्त हूँ कि सीधी भेजी हुई शिकायतोंके अलावा, कमसेकम उन स्थितियों में जिनमें लोग स्वयं शिकायत कर सकते हैं, अन्य शिकायतोंपर ध्यान देना मेरे लिए सम्भव नहीं ।"