पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/२७३

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२१७. पत्र : जी० ई० चैटफील्डको

आश्रम
साबरमती
अप्रैल १६, १९१९

प्रिय श्री चैटफील्ड,

मुझे पता चला है कि शाहपुरमें कुछ बदमाश हैं जिन्होंने इन दुःखद घटनाओंके दौरान खूब लूटमार की है और वे अब भी वहाँके समीपवर्ती क्षेत्रमें शान्तिपूर्ण निवासियोंकी नाक में दम किये हुए हैं। बदमाश लोग लूटमार न मचायें, इस भयसे निवासियोंको रातभर जागते रहना पड़ता है। क्या वहाँ थोड़ी-सी पुलिस तैनात नहीं की जा सकती?

यद्यपि सरकार, अगर में श्री प्रैटकी[१]बात सही-सही समझ सका हूँ, मेरी सेवाएँ न तो माँग रही है और न मेरी अयाचित सेवाओंको चाहती ही है फिर भी जैसा कि मैं श्री से कह चुका हूँ राज्यकी जो भी सेवा में कर सकता हूँ वह मुझे अपनी समझके अनुसार करते रहना चाहिए। सभामें मैंने जो विचार प्रस्तुत किये थे उन्हें और अच्छी तरह लोकप्रिय बनानेके उद्देश्यसे मैं उसे गलीकूचोंमें पुरुषों और स्त्रियोंके छोटे-छोटे दलोंके समक्ष पढ़वा रहा हूँ और यदि लोग उसपर सम्मतियाँ देना चाहें तो मैं उनसे उनकी सम्मतियाँ माँगता भी हूँ।

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५४३) की फोटो-नकलसे।

२१८. पत्र : एफ० जी० प्रैटको

आश्रम
साबरमती
अप्रैल १६, १९१९

प्रिय श्री प्रेंट,

आपके पत्रके लिए धन्यवाद । इस समय मेरा कार्यक्रम इस प्रकार है:मैं कल अहमदाबादसे हिन्दी साहित्य सम्मेलनकी बैठकोंमें भाग लेनेके लिए जो १९, २० और २१ अप्रैलको होने जा रही हैं, बम्बई रवाना होऊँगा। २२ को या अधिकसे-अधिक २३ को लौटनेकी आशा करता हूँ । यदि मैं २३को लौटा, तो मेरा इरादा नडियादमें करीब दो घंटे रुकनेका है। अपनी वापसीके बाद में अहमदाबादमें संगठनके कार्यको उस ढंगसे जारी रखना चाहता हूँ जिसकी सूचना मैं श्री चैटफील्डको दे चुका हूँ।

  1. १.एफ० जी० प्रैट; बम्बई इलाकेके उत्तरी विभागके कमिश्नर।