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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसके पूर्व कि मैं वह कार्य प्रारम्भ करूँ जिसे " 'धावा कहा जा सकता है, मैं इस बात के लिए उत्सुक हूँ कि लोग सत्याग्रहके नितान्त शान्तिपूर्ण स्वरूपसे पूरी तरह परिचित हो जायें। यदि मेरे कार्यक्रमके सम्बन्धमें आप अपनी कोई इच्छा व्यक्त करना चाहते हैं तो मेरी यह उम्मीद जरूर है कि आप ऐसा करनेमें. यदि आवश्यकता समझी जाये तो, खानगी ढंगसे ही सही -- संकोच न करेंगे। यह कहना जरूरी नहीं है कि मैं उसे पूरी करने की भरसक कोशिश करूँगा । सरकार मेरा सहयोग भले न चाहे तो भी एक सत्याग्रहीके नाते मेरा यह कर्त्तव्य होगा कि मैं सहयोगात्मक कार्य करूँ और व्यवस्था कायम कराने तथा लोगोंके दिलोंमें पैठी हुई हिंसा की हवस मिटाने में सरकारकी सहायता करूँ ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गां०

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५४०) की फोटो - नकलसे।

२१९. सत्याग्रह माला - ५[१]

[ अप्रैल १७, १९१९][२]

"महात्मा गांधीनो सत्याग्रह" ( महात्मा गांधीका सत्याग्रह ) और “महात्मा गांधीना उद्गार" (महात्मा गांधीके उद्गार) शीर्षकसे गुजरातीमें दो कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। उनपर लाभशंकर हरजीवनदास दीहोरकरका नाम दिया है। इन कविताओं में जो विचार प्रकट किये गये हैं, वे मेरे उद्गार नहीं हैं । उनमें कुछ बातें बहुत द्वेष पूर्ण हैं, वैर बढ़ानेवाली हैं और गलत उत्तेजना फैलानेवाली हैं; इसलिए सत्याग्रहके विरुद्ध हैं । इसलिए मेरा अनुरोध है कि कोई भी भाई या बहन किसी भी तहरीरको, जिसपर मेरे हस्ताक्षर न हों, मेरी लिखी न मानें । यह समय ऐसा नाजुक है कि प्रत्येक स्त्री-पुरुषको बड़ी सावधानी बरतनेकी जरूरत है। किसीकी भी बातोंमें नहीं आना चाहिए।

मेरे लेखोंमें द्वेष नहीं हो सकता, क्रोध नहीं हो सकता, क्योंकि मेरा विशिष्ट धार्मिक विश्वास है कि हम शासकोंके प्रति या किसीके प्रति द्वेष बढ़ाकर अपना सच्चा हित-साधन नहीं कर सकते। मेरे लेखोंमें असत्यके लिए गुंजाइश हो ही नहीं सकती, क्योंकि मेरा अटल विश्वास है कि सत्यके सिवा कोई और धर्म है ही नहीं । मैं मानता हूँ कि असत्य द्वारा आर्थिक या कोई और भी लाभ प्राप्त हो सकता हो, तो उसे अस्वीकार करनेकी मुझमें शक्ति है मेरे लेखमें किसी भी व्यक्तिका तिरस्कार नहीं हो सकता, क्योंकि मेरा खयाल है कि यह पृथ्वी प्रेमके बलपर ही टिकी हुई।

  1. १. प्रकाशित पत्र में इसका शीर्षक था : 'महात्मा गांधीके लेखोंकी विशेषताएँ'।
  2. २.देखिए महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५ ।