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पत्र : स्वामी श्रद्धानन्दको

है। जहाँ प्रेम है, वहीं जीवन है, प्रेम-रहित जीवन मृत्युके समान है।प्रेम उसी सिक्केका दूसरा पहलू है, जिसका पहला पहलू सत्य है । मेरा दृढ़ विश्वास है और मेरा चालीस वर्षका अनुभव है कि सत्य और प्रेमसे सारा संसार जीता जा सकता है । मैं यह मानता हूँ कि शासकोंकी भूलोंको भी हम सत्य और प्रेमके द्वारा दूर कर सकते हैं । और इसीलिए मेरे लेखोंमें रक्तपात करने या किसीका माल असबाब जला देनेकी अनुमति हो ही नहीं सकती । स्पष्ट है कि सारे लेख, जो मेरे नामसे लिखे और छापे जाते हैं, मैं पढ़ नहीं सकता । इसलिए मेरे नामसे प्रकाशित होनेवाले सभी लेखादिको उपर्युक्त कसौटी पर कस लेनेकी सब भाइयोंसे मेरी प्रार्थना है। जिन लेखों में असत्य, द्वेष, वैर-भाव, हिंसा आदिका सुझाव हो, उनका सब भाई त्याग करें, यह मैं चाहता हूँ और यही मेरी प्रार्थना है। उक्त कविताओंके रचयिता लाभशंकर हरजीवन दीहोरकरको मैं नहीं जानता,परन्तु वे यह पत्रिका देखें, तो उन्हें भी मेरी सलाह है कि किसी मनुष्यपर कुछ उद्गारोंका आरोपण करनेसे पहले उस व्यक्तिको वे उद्गार दिखा देना और प्रकाशित करनेसे पहले उसकी अनुमति ले लेना जरूरी है। यह विवेक और मर्यादाकी प्रथम माँग है।

[ गुजरातीसे ]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

२२०. पत्र : स्वामी श्रद्धानन्दको

आश्रम
साबरमती
अप्रैल १७, १९१९

प्रिय श्रद्धानन्दजी,

मैं यह पत्र अंग्रेजीमें लिख रहा हूँ; श्री शुएब चाहते हैं कि जिन लोगोंके सामने यह पढ़ा जायेगा उनकी खातिर मुझे अंग्रेजीमें ही लिखना चाहिए। जिन प्रश्नोंके[१]उत्तर मुझसे माँगें गये हैं वे सम्भवतः आपके सामने होंगे । इसलिए यहाँ मैं उनकी क्रम संख्या ही दूँगा।

प्रश्न सं० १ के सम्बन्धमें मेरा उत्तर इस प्रकार है : सत्याग्रहियोंके अतिरिक्त जो अन्य व्यक्ति प्रदर्शनोंमें भाग लेते हैं उन्हें उस अवसरपर सत्याग्रहके नियमोंका पालन अवश्य करना चाहिए। इसलिए वे बड़ी से बड़ी उत्तेजनात्मक कार्रवाई किये जानेपर भी बदला न लेनेके लिए बाध्य हैं। जिस अवसरपर अ-सत्याग्रही जनता भी यदि आन्दोलन में भाग ले रही हो तो उस समय उनके तथा सत्याग्रहियोंके बीच कोई अन्तर नहीं रखा जा सकता । अ-सत्याग्रही भाग तभी ले सकते हैं जब वे वचन दें कि सहयोग माँगा जानेपर वे हमारे सिद्धान्तको अंगीकार करेंगे। इसलिए मेरा खयाल

  1. १. देखिए परिशिष्ट ३; ये प्रश्न “सत्याग्रह माला-३" पर आधारित थे।