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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है कि जिस समय अ-सत्याग्रही हमारे साथ काम कर रहे हैं उस समय हम भी उनके कामोंके लिए उतने ही जिम्मेदार हैं जितना कि खुद अपने कामोंके लिए। मेरा खयाल है कि यह बात आपको स्पष्ट हो जायेगी कि इस आपसी सद्भावके बिना सत्याग्रह को असत्याग्रह द्वारा आसानीसे प्रभावहीन या व्यर्थ किया जा सकता है। आप परस्पर विरोधी वस्तुओंको मिलायें और विस्फोट न हो ऐसा हो ही नहीं सकता ।

प्रश्न सं० २के लिए मेरा जो जवाब है वह वास्तवमें उपर्युक्त बातोंसे ही निकल आता है । मैं समझता हूँ कि हमें कानूनके सामान्य नियमोंका अधिक सख्ती से पालन करना चाहिए, क्योंकि हम सत्याग्रही हैं। जो परिणाम औचित्यपूर्वक किसी व्यक्तिके आचरणसे निष्पन्न परिणाम सिद्ध किये जा सकते हैं, ऐसा माना जा सकता है कि उन परिणामोंको झेलनेका उसका इरादा जरूर रहा होगा । मेरा खयाल है कि कमसे कम मुझे तो कुछ परिणामोंकी पूर्व कल्पना कर लेनी चाहिए थी, खास तौरपर यह देखते हुए कि मेरे उन मित्रों द्वारा मुझे पूरी तरह चेता दिया गया था जिनकी सम्पत्ति मैं सदा मूल्यवान समझकर माँगता आया हूँ । परन्तु मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं जड़मति हूँ। मैं यह मजाकमें नहीं कह रहा हूँ। कितने ही मित्रोंने मुझे बताया है कि मैं अन्य लोगों के अनुभवोंसे लाभ उठा ही नहीं पाता और हर मामलेमें खुद आगसे होकर गुजरने और कटु अनुभवके बाद ही कुछ सीखता हूँ । इस आरोपमें अतिशयोक्ति तो है, परन्तु इसमें सत्यका पुट भी है। किन्तु मेरी यह जड़ता, मेरी दुर्बलता भी है और मेरा गुण भी है। यदि मैंने अपने भीतर इस हठपूर्ण प्रतिरोधको विकसित न होने दिया होता तो में सत्यका आग्रह भी न रख पाता । प्रतिरोधका यह गुण बुद्धिसे नहीं अनुभवसे ही प्राप्त हो सकता है । सत्यकी खोज बेशक खतरनाक धन्धा है और खासकर उस समय जब आपको आज जैसे किसी ऐसे वातावरणमें काम करना पड़े, जो असत्यसे और उससे उत्पन्न होनेवाले सभी दोषोंसे परिपूर्ण हो । अब आप समझ गये होंगे कि मैं ऐसा क्यों मानता हूँ कि दिल्ली और बम्बईकी घटनाओंके लिए जो हमारे दृष्टिकोणके अनुसार बहुत गम्भीर नहीं हैं, और अहमदाबाद तथा वीरमगाँवकी बहुत गम्भीर एवं भर्त्सना के योग्य घटनाओंके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। दिल्लीसे बाहर पंजाबमें जो हुआ उसके लिए मैं अपनेको तथा साथियोंको सारे दोषसे बरी ठहराता हूँ । यदि किसी अन्य मौकेपर डॉक्टर सत्यपाल और डॉ० किचलू गिरफ्तार किये जाते तो ये बातें सत्याग्रहके न होते हुए भी हो सकती थीं। फिर भी मैं इतना और कहूँगा कि पंजाबकी घटनाएँ हमें इसका संकेत देती हैं कि हमारी आगेकी कार्यप्रणाली कैसी हो ।

प्रश्न सं० ३ का मेरा उत्तर सं० १के उत्तरमें ही आ जाता है । वैसे तो मेरे उत्तर आन्दोलनमें ही अन्तर्निहित हैं । सत्याग्रहका अर्थ वह सब है जो मैंने कहा है, इससे कम रत्तीभर भी नहीं । मेरी बताई परिस्थितिको छोड़कर और किसी स्थिति में सफलता प्राप्त होना असम्भव है ।

प्रश्न सं० ४का उत्तर : क्या आपको मेरे भाषणका पूरा पाठ मिल गया है ? उससे आपको मालूम हो जायेगा कि सत्याग्रह आन्दोलनको बन्द कर देनेकी सम्भावनाके विषयमें मैंने जो लिखा है उसका क्या अभिप्राय है । आपने जो अर्थ लगाया है उस अर्थमें आन्दोलनका त्याग कभी नहीं किया जा सकता । परन्तु हमारे सत्याग्रहको शायद