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२२१. भाषण : हिन्दी साहित्य सम्मेलनको बैठकमें[१]

बम्बई
[ अप्रैल १८, १९१९ से पूर्व ]

आज हम जिस कार्य के लिए एकत्रित हुए हैं उसकी दृष्टिसे मुझे हिन्दीमें बोलना चाहिए। लेकिन इस समय मैं जानबूझकर हिन्दी में नहीं बोल रहा हूँ, क्योंकि मैं इस भाषाकी खूबियाँ आपको समझाना चाहता हूँ, ये खूबियाँ मैं आपको गुजरातीमें समझाऊँगा । मेरा खयाल है कि गुजराती भाषामें इन्हें बता सकनेकी मुझमें विशेष शक्ति है। हिन्दुस्तानमें इस समय जो सत्याग्रह आन्दोलन चल रहा है, हिन्दी भाषाका आग्रह भी उसमें आ जाता है । सत्यका आग्रह करना, सत्याग्रहकी मुख्य बात है । और यदि हम सत्यपर विचार करने बैठें तो हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि इस विचारसे राष्ट्रीय भाषा के रूपमें हमें हिन्दीमें ही बोलना पड़ेगा। ऐसी एक भी अन्य देशी भाषा नहीं है। जो हिन्दीके साथ स्पर्धा कर सके ।

हिन्दी भाषा क्या है, हमें इस बातपर थोड़ा विचार करना होगा । मैं यह नहीं मानता कि हिन्दी अर्थात् वह भाषा जिसमें संस्कृतके शब्द आते हैं, कृत्रिम भाषा है । इसी तरह उर्दू भी, जिसमें फारसीके शब्द आते हैं, हिन्दी नहीं है। हम राष्ट्रीय भाषाके रूपमें जिस भाषाको बोलना चाहते हैं वह हिन्दी और उर्दूका मिला-जुला रूप है । बहुत करके यह भाषा इस समय बिहार, दिल्ली तथा पंजाबमें बोली जाती है। हिन्दू और मुसलमान दोनों एक नहीं हैं, जब यह भावना लोगोंके दिलोंमें घर करने लगी और जब दोनोंके बीच द्वेष-भाव उत्पन्न हुआ तब इन दोनों भाषाओंमें रस्साकशी होने लगी। कुछ-एक लोगोंने, जिसमें संस्कृत के शब्द होते हैं उस भाषाको ही हिन्दी कहा तथा कुछने फारसी और अरबी भाषाके शब्दोंसे युक्त भाषाको ही उर्दू कहा। लेकिन सामान्य हिन्दू और मुसलमान जो बोलते हैं, वह भाषा तो ऐसी नहीं है। हम चाहे जिस जगह जायें और हिन्दू-मुसलमानोंको बोलते हुए सुनें तो देखेंगे कि उसमें संस्कृत, फारसी तथा अरबीके शब्द आते हैं; और हिन्दू हो अथवा मुसलमान, कोई भी इनका त्याग नहीं करते। ऐसी मिश्रित भाषाको स्वीकार करनेसे हम हिन्दू और मुसलमानोंका हृदय स्वच्छ हो जायेगा। इस तरहकी जिस भाषाकी मैं चर्चा कर रहा हूँ उसे उत्तर अथवा दक्षिणका प्रत्येक मुसलमान भाई समझ सकता है; हालाँकि उसे अपने प्रान्तकी भाषा आती है । [ भारतके] मानचित्रपर दृष्टिपात करते समय [ आप देखेंगे कि ]

  1. १.यह भाषण हिन्दी साहित्य सम्मेलनके नवें अधिवेशनकी तैयारीके सिलसिलेमें आयोजित एक बैठक में दिया गया था, जिसकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी; लेकिन उनके अस्वस्थ होनेके कारण उनका लिखित गुजराती भाषण उनकी ओरसे किसी दूसरेने पद सुनाया था। भाषणकी इस रिपोर्टमें, जैसा कि मूल गुजराती रिपोर्टके प्राक्कथन में बताया गया उसके मुख्य अंशोंका ही समावेश हुआ है । इस भाषणको एक संक्षिप्त हिन्दी रिपोर्ट भी उपलब्ध है; उसमें प्राप्त अतिरिक्त अंशोंको यहाँ पाद-टिप्पणियोंमें दिया जा रहा है ।