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भाषण : हिन्दी साहित्य सम्मेलनकी बैठक में

मद्रासके थोड़ेसे हिस्सेको छोड़कर शेष भागोंके हिन्दू भी इस भाषाको समझते हैं । और फिर, उनको भी यदि भागों में विभाजित करने बैठें तो महाराष्ट्र, गुजरात, बंगाल और सिन्धके अलावा दूसरे अन्य प्रान्तोंमें यह भाषा बोली जाती है। गुजरात आदि प्रान्तोंमें भी मौलवी और हिन्दू धर्मगुरुओंने दोनों भाषाओंका प्रचार किया है । तुलसीकृत 'रामायण' से कदाचित् ही कोई अनभिज्ञ होगा । हिन्दी कहिए अथवा उर्दू दोनोंका व्याकरण एक ही है। हिन्दुस्तानमें यदि कोई भाषा राष्ट्रभाषा हो सकती है तो वह यही हिन्दी उर्दू है। इससे किसीको यह अर्थ नहीं लगाना है कि हम अपनी-अपनी प्रान्तीय भाषाएँ भुला दें। राष्ट्रीय उद्देश्यके लिए हमें ऐसी भाषा निश्चित करनी चाहिए कि जिसका अन्तर्प्रान्तीय उपयोग हो सके। इसलिए हिन्दी-उर्दू मिश्रित जिस भाषाकी मैंने चर्चा की है उस भाषाको हमारे शिक्षित वर्गको तो सीख ही लेना चाहिए। मैं अपनी अल्प बुद्धिके अनुसार इस बातसे अवगत हूँ कि इस देशमें बड़े-बड़े विद्वान् यह मानते हैं कि [ अन्तप्रान्तीय उपयोगके योग्य भाषा तो ] अंग्रेजी भाषा ही है । लेकिन वह भाषा कदापि राष्ट्रभाषा नहीं हुई है। क्योंकि उसमें और हिन्दी भाषामें किसी प्रकारकी भी समानता नहीं है। राष्ट्रभाषा ऐसी सहल होनी चाहिए कि जिसे कोई भी सीख सके । यदि हम पराधीनतासे ग्रस्त न हों तो हम आसानीसे समझ सकते हैं कि ऐसी सामान्य भाषाकी आवश्यकता है । अंग्रेजी सीखनेके पीछे लाखों रुपया खर्च करनेके बावजूद गिने-चुने लोग ही इस भाषाको सीख सके हैं; और ऐसा होनेपर भी उस भाषापर पूर्ण अधिकार रखनेवाले लोग तो इक्के-दुक्के ही होते हैं । इस भाषाको सीखनेके लिए जो प्रयत्न करना पड़ता है उसे देखता हूँ तो मुझे तो ऐसी प्रतीति होती है कि उससे देशका तेज क्षीण होता जा रहा है।

इस प्रश्नके भीतर भारतकी उन्नतिके बीज निहित हैं। जिस राष्ट्रने अपनी भाषाका अनादर किया है उस राष्ट्रके लोग अपनी राष्ट्रीयता खो बैठते हैं। हममें से अधिकांश लोगोंकी यही हालत हो गई है। पृथ्वीपर हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहाँ माँ-बाप अपने बच्चोंके साथ मातृभाषामें न बोलकर ...[१] मैं अंग्रेजीसे द्वेष नहीं करता। मुझे यह भी लगता है कि कुछ कामोंके लिए कुछ लोगोंको अंग्रेजी सीखनी है । हम लोगोंमें दुभाषियेका काम करनेके लिए [ कुछ लोगोंको ] अंग्रेजी सीखनी चाहिए। और मैं इस बातको स्वीकार करता हूँ कि इसके लिए अंग्रेजीका पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। लेकिन हमारे अन्य कार्योंके लिए, अदालतों और केन्द्रीय विधानसभामें राष्ट्रभाषाके रूपमें हिन्दी होनी चाहिए। इसके अलावा दूसरी भाषामें कामकाज चलानेसे राष्ट्रको नुकसान पहुँचता है । जबतक हम इस तत्त्वको ग्रहण नहीं कर लेते तबतक हमारी सारी मेहनत बेकार जायेगी । इसीसे मैंने पिछले वर्ष[२]यह कहा था कि हिन्दी साहित्य सम्मेलनका अधिवेशन बम्बई में किया गया होता तो अच्छा होता। हम देखते

  1. १. गुजराती रिपोर्ट इस स्थानपर दोषपूर्ण है । भाषणकी हिन्दी रिपोर्ट के अनुसार यहाँ यह लिखा हुआ है : "अपने बच्चोंको अपनी मातृभाषाके बदले अंग्रेजीमें लिखना पसन्द करेंगे ।"
  2. २.सम्भवत : २९-३-१९१८ को इन्दौरमें हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलनके आठवें अधिवेशनपर, जिसकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी । देखिए खण्ड १४।