पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/२८५

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२२८. पत्र : गिलिस्पीको

आश्रम
अप्रैल २२, १९१९

प्रिय श्री गिलिस्पीको'[१]

मैं यहाँ कल पहुँचा। आपका कृपापूर्ण पत्र मिला। आप देखेंगे कि जो राय आपने दी है उसे मैंने पहले ही भाँप लिया था। मेरा खयाल है कि आपने वह लोक घोषणा पढ़ ली होगी जिसमें सत्याग्रहको थोड़े समय के लिए स्थगित करनेकी सूचना दी गई है। मैं आपकी राय और आलोचनाकी, जब भी आप देना जरूरी समझें, कद्र करूँगा। मैं नहीं जानता कि स्वदेशीपर जो दो लेख मैंने लिखे हैं, वे आपने पढ़ लिये हैं या नहीं। हममें से कुछ व्यक्ति अन्तिम कदम उठाना चाहते हैं। मैं निश्चय ही मानूँगा कि अंग्रेज मित्र आन्दोलन में मेरे समर्थक और साथी बनें और उसे प्रोत्साहन दें । मेरी राय में स्वदेशीके बिना कोई भी देश सम्मानपूर्वक नहीं रह सकता।

हृदयसे आपका,
मो० क० गां०

दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५५८) की फोटो नकलसे ।

२२९. पत्र : जी० ई० चैटफील्डको

आश्रम
अप्रैल २४, १९१९

प्रिय श्री चैटफील्ड,

मेरे १४ तारीखके भाषणके पश्चात् प्रकाशित होनेवाले पत्रकोंको[२]प्रेषित करनेके सम्बन्धमें मैंने निश्चित आदेश नहीं दिये थे-- यह भूल मुझे अभी-अभी मालूम हुई है । उन पत्रकोंकी प्रतियाँ इस पत्रके साथ अवलोकनार्थ भेज रहा हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गां०

दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५६३) की फोटो - नकलसे ।

  1. अहमदाबादवाले।
  2. २. संख्या ४ और ५।