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२३५. भाषण : मारवाड़ियोंकी सभा में[१]

बम्बई
अप्रैल २७, १९१९

मुझे बहुत दुःख है कि मैं सभामें निश्चित समयपर नहीं आ सका । किन्तु मैं जिस काम में लगा था वह भी आपका ही काम था,[२]और उसे एकदम खत्म करके निकलना सम्भव नहीं था । हम आज यहाँ मिलेंगे, मुझे कल इसकी कोई कल्पना नहीं थी । अर्थात् जब मुझे बम्बई आनेका निमन्त्रण मिला था तब मुझे इस बातका कोई अन्दाज नहीं था कि भाई हॉर्निमैनको देशनिकाला दे दिया जायेगा । यदि हमारी स्थिति इस समय विषम न हो गई होती तो मैंने जो सलाह अपनी पत्रिकामें दी है उससे भिन्न सलाह देता । मैंने यह अनुभव कर लिया है कि लोग अभी सत्याग्रहके मन्त्रको पूरी तरह ग्रहण नहीं कर पाये हैं। हमें इस बातकी ठीक प्रतीति नहीं है कि सत्याग्रहका आधार आत्मबल ही है । मैं अब यह बात समझ गया हूँ । यदि मैंने यह कमी महसूस न की होती तो मैंने भाई हॉर्निमैनके विछोहपर दूसरी ही तरहका कदम उठाया होता । किन्तु जबतक सत्याग्रहकी शुद्ध नींवको लोगोंने समझा और अनुभव नहीं किया है तबतक शुद्ध सत्याग्रहका भवन खड़ा करना असम्भव है । इसलिए मुझे तो यह सलाह देनी पड़ी है कि भाई हॉर्निमैन-जैसे महान् लोक-सेवकसे अलग होने पर भी हमें कोई कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।

किन्तु हम कोई कार्रवाई न करें उसका अर्थ यह है कि हम फिलहाल कोई बाहरी कार्रवाई नहीं कर सकते। हम अपनी दूकानें बन्द नहीं कर सकते और न अपना काम-काज ही रोक सकते हैं। क्योंकि हमने यह देखा है कि इससे देश में उपद्रव हो जाते हैं । हमने यह भी देखा है कि उससे खून-खराबी हो जाती है ।

और खून-खराबी किसी भी अवसरपर सत्याग्रहका अंग नहीं हो सकती । सत्याग्रहका आधार सत्य और अहिंसा है । जिन्होंने मेरी पत्रिका पढ़ी होगी उन्होंने यह देखा होगा । जो मनुष्य सत्यका पालन करता है और किसी भी पुरुष या स्त्रीको या उसकी जमीन-जायदादको नुकसान पहुँचाना नही चाहता वही सत्याग्रहकी बात समझ सकता है। हम रौलट कानूनके विरुद्ध सत्याग्रह करना चाहते हैं, यह बात आप सब भाई और बहन जानते हैं । हमने अपनी प्रतिज्ञामें बताया है कि हम रौलट कानूनको नहीं मानेंगे; इतना ही नहीं बल्कि अन्य कई कानूनोंको भी, जिन्हें हमारी समिति तोड़नेका निश्चय करेगी, हम सविनय तोड़ेंगे। कानूनोंका ऐसा सविनय भंग वे ही

  1. १. यह सभा कालबादेवीके नर-नारायण मन्दिरमें सायं ५-३० बजे हुई थी। गांधीजी सभामें खड़े होकर भाषण नहीं दे सके, अत: उनका लिखित भाषण जमनादास द्वारकादासने पढ़ा।
  2. २. सम्भवत: पुलिस अफसरने ही मूल पाठमें यह टिप्पणी दे दी थी: “गांधीजी मुझसे बातचीत करनेमें व्यस्त थे ।"