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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्त्री-पुरुष कर सकते हैं, जो उक्त सिद्धान्तोंका पालन कर सकते हों । उन सिद्धान्तोंका पालन किये बिना कानूनका भंग करना तो अनाड़ीपन ही कहा जा सकता है । इस प्रकारके कानून-भंगसे लोगोंका कोई हित-साधन नहीं किया जा सकता ।

इसका अर्थ यह है कि इस समय सत्याग्रहका सबसे बड़ा काम यही है कि जहाँ- तक सम्भव हो लोगोंके सम्मुख सत्य और अहिंसाके सिद्धान्त पहुँचाये जायें और जब हमें यह विश्वास हो जाये कि लोगोंने सत्य और अहिंसाके सिद्धान्तोंको ग्रहण कर लिया है, उस समय हम फिर सविनय कानून भंग करें। इसी कारण इस पत्रिकामें दूसरी प्रतिज्ञा लोगोंके सम्मुख रखी गई है । इस प्रतिज्ञाका नाम सहायक प्रतिज्ञा है । जो स्त्री या पुरुष इस प्रतिज्ञाको ले उसे यह समझ लेना चाहिए कि उसने सत्य और अहिंसाका पालन करना स्वीकार किया है। यदि हमें सत्य और अहिंसामें विश्वास हो जाये तो मैं यहाँतक कह सकता हूँ कि उस हालतमें हमें शायद कानूनका भंग करनेकी जरूरत ही न रहे। आप सबको प्रह्लादके उदाहरणका स्मरण तो होगा ही । जिस तरहकी सविनय अवज्ञा प्रह्लादने की थी, वैसी ही हमें करनी है । जैसे प्रह्लादने अपने पिताकी आज्ञाका सविनय भंग करते हुए सत्यको नहीं छोड़ा, वैसे ही हम भी सत्यको नहीं छोड़ सकते । प्रह्लादने अपने पिताको कोई कष्ट देनेका तनिक भी खयाल नहीं किया, वैसा ही व्यवहार हमारा भी होना चाहिए। सत्य और अहिंसाके बिना कानूनका भंग करना धर्म नहीं, बल्कि अधर्म है । हमने अपनी इस लड़ाईको धार्मिक लड़ाई माना है । भाई हॉर्निमैन के सम्बन्ध में निकाली गई अपनी आजकी पत्रिकामें मैंने इस सम्बन्धमें प्रकाश डाला है ।

अब में आधुनिक सभ्यताके सम्बन्धमें दो शब्द कहना चाहता हूँ । मैंने संसारके इतिहास में यह कहीं नहीं पढ़ा कि किसी देशने अपना समस्त समय केवल शस्त्र बलके प्रशिक्षण में लगाया हो। यह तो हम इस जमानेमें यूरोपमें ही देख रहे हैं । भारतके हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों, और यहूदियोंसे मेरा इतना ही निवेदन है कि उन्हें यूरोपीय सभ्यताके प्रवाहमें डूबकर मर नहीं जाना चाहिए। फिर भी मैं यह देख रहा हूँ कि भारतमें इस सभ्यताका बड़ा जोर चल रहा है । यदि ऐसा न होता तो हमने जो खून-खराबी देखी, वह कभी न होती । मैं इसके गुण-दोषोंकी आलो- चना करना नहीं चाहता । मेरा कर्त्तव्य तो केवल यह बताना है कि हम खून-खराबीमें विश्वास करके भारतका त्राण कदापि नहीं कर सकते । हम खून-खराबी करके भारतको कोई लाभ नहीं पहुँचा सकते । हमें जबतक इस बातका पूरा विश्वास नहीं हो जाता तबतक हम वास्तविक अर्थों में सत्याग्रह नहीं कर सकते। मैं विभिन्न धर्मोका अध्ययन करके यही समझ सका हूँ कि जो लोग पशुबल अर्थात् शस्त्रबलपर निर्भर हैं, वे तो अधर्मको ही प्रवर्तित करते हैं और जिनका विश्वास आत्मबलमें है वे धर्मको । सत्याग्रह आत्मबलपर विश्वास रखनेके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है । इसलिए बहनों और भाइयोंसे मेरा निवेदन यही है कि हमने जो कार्य हाथमें लिया है उसकी पूर्तिके निमित्त जो कुछ कहा गया है उसको ध्यान में रखें और फिर उसमें सहायक हों ।

अब यदि मैं कोई व्यावहारिक सलाह दूँ तो मुझे इतना ही कहना है कि मैंने जो सिद्धान्त अभी सामने रखे हैं, वे यदि आपको पसन्द हों तो आप अन्य स्त्री-