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सत्याग्रह माला - १०
मैं जहाँ भी रहूँगा, जो कुछ बन पड़ेगा, अवश्य करूँगा।

आपका सतत स्नेहपात्र,
बी० जी० हॉर्निमैन'

श्री जमनादासको लिखा गया पत्र इस प्रकार है :

प्रिय जमनादास,
मैं आशा करता हूँ कि चाहे कुछ भी क्यों न हो, बम्बई नगर शान्त रहेगा।
मैं नहीं जानता, यह पत्र आपको मिलेगा या नहीं, किन्तु यदि मिल जाये तो सबसे मेरा स्नेहाभिवादन कहें । इस बीच में जहाँ-कहीं रहूँगा, भारतका काम करता रहूँगा।

सदा आपका ही,
बी० जी० हॉर्निमैन

ये दोनों पत्र उन्होंने 'टकाडा' जहाजसे लिखे हैं। आगे समाचार यह है कि उनका स्वास्थ्य बिलकुल ठीक है । उनकी देख-भाल भली-भाँति की जा रही है और अधिकारियोंने उनसे पूर्ण शिष्टताका व्यवहार किया है। निर्वासनके आदेशका अर्थ यह है कि श्री हॉर्निमैन इंग्लैंड पहुँचनेपर सर्वथा मुक्त होंगे और वहाँ उनकी स्वतन्त्रता पर कोई प्रतिबन्ध न रहेगा । और चूँकि वे जहाँ भी हो भारतके लिए काम करनेको कृतसंकल्प हैं, इसलिए ऐसी सम्भावना है कि वे इंग्लैंडमें रहते हुए भारतकी बहुत बड़ी सेवा करेंगे । किन्तु इससे लोगोंको सन्तोष नहीं हो सकता । वास्तविक सन्तोष तो उन्हें तभी होगा जब उनके निर्वासनका आदेश वापस ले लिया जायेगा। जबतक वे हमारे बीच वापस नहीं आ जाते, तबतक हम चुप नहीं बैठ सकते । हम जानते हैं कि वे फिर कैसे हमारे बीच आ सकते हैं। पहली और सर्वोपरि बात यह है कि हम आत्मसंयमसे काम लें और शान्ति रखना सीखें। यदि हम शान्ति भंग करेंगे तो उससे श्री हॉर्निमैनकी वापसीमें देर लगेगी और उन्हें दुःख भी होगा ।

मो० क० गांधी

गांधी स्मारक निधिमें सुरक्षित कर्नाटक प्रिंटिंग प्रेस, बम्बई द्वारा मुद्रित मूल अंग्रेजी पत्रकसे ।

सौजन्य : एच० एस० एल० पोलक