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२४४. पत्र : सिन्धके सत्याग्रहियोंके नाम

बम्बई
अप्रैल ३०, १९१९

प्यारे भाइयो और बहनो,

सिन्धमें जो-कुछ हो रहा है, उसके बारेमें मैं काफी सुन और पढ़ चुका हूँ । देखता हूँ, वहाँ कुछ लोग गिरफ्तार किये गये हैं । यदि ये गिरफ्तारियाँ सत्याग्रहके कारण की गई हैं तो सत्याग्रहियोंके लिए इससे अधिक अच्छी या शुभ बात दूसरी नहीं हो सकती । इस प्रकार गिरफ्तार किये गये सत्याग्रहियोंको सजा दी जाये तो वे प्रसन्नतासे जेल जायें और जो बाहर रह जायें वे पूरी तरह शान्त और निरुद्विग्न रहकर उनके कष्टमें हिस्सा बटायें। किन्तु, यदि वे सत्याग्रहके नियमोंके विरुद्ध कोई काम करनेके कारण-अर्थात्, जिन कानूनोंके पीछे नैतिकताका भी बल है, उन कानूनोंको तोड़नेके जुर्ममें-गिरफ्तार किये गये हों और किसी निष्पक्ष अदालत द्वारा अपराधी ठहराये गये हों तो उन्हें जो भी दण्ड दिया जायेगा, वे उसके पात्र होंगे । इसलिए दोनों ही स्थितियोंमें हमारे लिए शिकायतका कोई कारण नहीं हो सकता । किन्तु मुझे पता चला है कि इन गिरफ्तारियोंसे कितने ही लोग उत्तेजित हो गये हैं । इनसे मैं कहना चाहूँगा कि उन्होंने सत्याग्रहके नियमको नहीं समझा है । हम जो कुछ भी कहें या करें, उसमें केवल सत्यका ही व्यवहार होना चाहिए। हम यह प्रतिज्ञा लेते हैं कि सत्य और अहिंसाके सिद्धान्तोंपर आचरण करते हुए हम किसी भी व्यक्ति या उसकी सम्पत्तिको नुकसान न पहुँचायेंगे । यदि हम संकटमें फँस जायें तो जो लोग हमारे साथ हैं, उन्हें शिकायत करनेका या असन्तोष प्रकट करनेका कोई कारण नहीं होना चाहिए। सत्याग्रहका निचोड़ यह है कि, हमें चाहे कितना भी उत्तेजित किया जाये, हम हिंसापर नहीं उतरेंगे। यदि हम किसी भी तरह की हिंसा करते हैं तो यह संघर्ष उसी क्षण विफल हो जाता है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि चाहे कितने ही मुकदमे चलाये जायें, सब लोग शान्त और निरुद्विग्न रहेंगे।

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६५७७ ) की फोटो - नकलसे ।