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२४५. पत्र : केरको

[ अप्रैल, १९१९][१]

प्रिय श्री केर,[२]

मुझे आशा थी कि सोमवारको मेरी नडियादमें उपस्थिति सम्भव हो जायेगी, परन्तु यहाँकी संकटपूर्ण स्थितिके कारण मुझे बम्बईमें रुकना पड़ गया है । नडियादसे कुछ सज्जन यहाँ आये हुए हैं और वे मुझे बताते हैं कि बिजलीके तारोंको काटनेमें जिन लोगोंका हाथ था वे बातको पूर्ण रूपसे कबूल कर लेनेको तैयार हैं; परन्तु वे चाहते हैं कि जब वे ऐसा करें तब मैं नडियादमें होऊँ। मैं नहीं जानता कि मुझे इसका अवकाश कब मिलेगा। फिर भी, मुझे आशा है कि सम्बद्ध लोगोंकी यह इच्छा पूरी करनेमें मुझे कोई कठिनाई नहीं होगी ।

महादेव देसाईके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (जी० एन० ८२२७) की फोटो नकलसे ।

२४६. सत्याग्रह माला - ११

मई १, १९१९

भाइयो और बहनो,

भाई हॉर्निमैनके सम्बन्धमें पत्र आते रहते हैं और उनमें अनेक प्रकारके नारे होते हैं। इनमें अधिकतर पत्र गुमनाम हैं । उनमें से एक पत्रमें यह कहा गया है कि हम सभाएँ वगैरह करें और ऐसा करनेमें कदाचित् रक्तपात हो जाये तो भी परवाह न करें। उसमें कहा गया है कि बिना हिंसा किये हमें कुछ नहीं मिलेगा; उसके बिना हम श्री हॉर्निमैनको वापस नहीं ला सकेंगे।

सत्याग्रहकी दृष्टिसे तो इस पत्रका जवाब देना अत्यन्त सरल है । रक्तपातके द्वारा ही श्री हॉर्निमैन हिन्दुस्तान लौट सकते हों, तो सत्याग्रहियोंको उनका वियोग सहन कर लेना चाहिए । परन्तु वास्तवमें ऐसी कोई बात नहीं है । सत्याग्रह द्वारा हम उन्हें निश्चित ही भारतमें वापस ला सकते हैं। सच तो यह है कि उन्हें जल्दीसे- जल्दी भारत लानेका उपाय केवल सत्याग्रह ही है । सत्याग्रह कभी कानून तोड़कर और कभी कानूनका पालन करके किया जा सकता है। कभी हड़ताल करके, सभाएँ करके, जुलूस निकालकर सत्याग्रह किया जा सकता है, और कभी हड़तालें न करके,

  1. १. बुद्धिप्रकाशमें प्रकाशित तारीखवार जीवन-वृत्तान्त और पत्रकी विषय वस्तुसे यह अप्रैल १९१९ में लिखा गया जान पड़ता है।
  2. २. खेड़ाके कलक्टर ।