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सत्याग्रह माला - ११

सभाएँ न करके, जुलूस न निकालकर किया जा सकता है। सत्याग्रहमें ऐसा एक भी काम नहीं हो सकता, जिसके द्वारा रक्तपात हो अथवा उसे प्रोत्साहन मिले। ऐसे समय जब लोग व्याकुल हो रहे हैं, क्रोधित हो रहे हैं, बड़ी-बड़ी सभाएँ करनेसे, जुलूस निकाल-नेसे, हड़तालें करनेसे लोगोंका और उत्तेजित हो उठना सम्भव है । इससे रक्तपात होनेमें देर नहीं लगेगी। जनता और पुलिस दोनोंसे भूल हो सकती है। एकसे भी भूल हो जाये, तो परिणाम दोनोंको भुगतना पड़ेगा। इस प्रकार हम साफ देख सकते हैं कि ऐसे अवांछनीय परिणामकी सम्भावनाको सत्याग्रहीको हर कोशिशसे रोकना ही चाहिए। इसे रोकने में ही उसका सत्याग्रह है । उसे रोकने में उसे जो मेहनत करनी पड़ेगी, जिस अनुशासनका पालन करना पड़ेगा, जो आत्मबल काममें लाना पड़ेगा, उससे राष्ट्र ऊँचा उठता है । जब लोग शान्त रहना सीख लें, क्रोधपर काबू कर सकें, संयम बरतते हुए जुलूस निकाल सकें, किसीपर दबाव डाले बिना शान्तिपूर्वक हड़ताल कर सकें, जब ऐसे कसे हुए स्वयंसेवक तैयार हो जायें जिनकी बात लोग सुनें और उसपर चलें, तब हम सभाएँ कर सकते हैं और हड़ताल कर सकते हैं। जो लोग इतना करने लग जायें, उनकी वाजिब माँगका विरोध कोई नहीं कर सकता, यह आसानीसे देखा जा सकता है । लोग ऐसा करना सीखें, इसीके लिए वर्तमान आन्दोलन हो रहा है। जिनके हाथमें यह पत्रिका आये और जो इस कार्य में सहायक हो सकते हैं, उन सबसे मैं सत्याग्रह-सभाके कार्यालय में नाम लिखानेका अनुरोध करता हूँ ।

अब जरा सत्याग्रहकी दृष्टिसे नहीं, परन्तु व्यावहारिक दृष्टिसे इस बातपर विचार करें कि क्या हम रक्तपात द्वारा श्री हॉर्निमैनको जल्दी ला सकते हैं या अपने दूसरे लक्ष्य सिद्ध कर सकते हैं। मैं मानता हूँ कि दूसरे देशों में जो कुछ भी सम्भव हो, किन्तु यह माननेका कारण नहीं कि वह भारत में भी सम्भव होगा। प्राचीन कालसे भारतकी शिक्षा भिन्न रही है । भारतमें ऐसा समय कभी नहीं आया जब यहाँके समस्त लोग पशुबलका प्रयोग करते दिखाई पड़ें। मेरी अपनी मान्यता तो यह है कि भारतने जान-बूझकर सार्वजनिक पैमानेपर पशु-बलके प्रयोगका त्याग किया है। पंजाब में हिंसाके क्या परिणाम हुए सो हमने देखा है । अहमदाबाद अभी तक उसके परिणाम भुगत रहा है। हिंसाके कितने भयंकर परिणाम हुए हैं, यह अभी हम आगे देख सकेंगे। सत्याग्रहियों को कानूनकी सविनय अवज्ञा स्थगित करनी पड़ी है। यह भी उसीका एक दुस्सह परिणाम है। इसलिए हमें यह खयाल बिलकुल गलत मानना चाहिए कि रक्तपात द्वारा हम श्री हॉर्निमैनको जल्दी वापस ला सकते हैं अथवा अन्य लक्ष्य पूरे कर सकते हैं।

एक अन्य पत्रमें यह दलील दी गई है कि सत्याग्रही स्वयं भले ही सभा आदि न करें परन्तु उन्हें दूसरोंको तो ऐसी सलाह देनेका कोई अधिकार नहीं है। इस समय भारत में हम देखते हैं कि कानूनकी सविनय अवज्ञाके अतिरिक्त अन्य सब सत्याग्रही कार्यक्रमोंमें अधिकांश भारतवासी हिस्सा लेना चाहते हैं । यह स्थिति जितनी आनन्द उत्पन्न करनेवाली है, उतनी ही चिन्ता पैदा करती है। इससे सत्याग्रहियोंपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है और उसमें से एक यह है : यदि लोगोंको सत्याग्रहमें रस आता हो, यदि लोग सत्याग्रहकी चमत्कारी शक्तिका अनुभव करना चाहते हों


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