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सत्याग्रह माला - १३

जाती है कि जब लोगोंको यह विश्वास हो जायेगा कि देशका सच्चा हित-साधन इस सन्देशका पालन करनेसे ही हो सकेगा, तब वे शान्ति रखेंगे । इस प्रकार स्वेच्छापूर्वक रखी गई शान्ति भारतकी प्रगतिमें बहुत बड़ा हाथ बँटायेगी । परन्तु यह हो सकता है कि भारत इस हदतक सत्याग्रहका रहस्य न समझ सके। वैसी दशामें हिंसाको फूट निकलनेसे रोकनेकी एक और आशा है। हाँ, जिस शर्तपर यह आशा आधारित है, वह हमारे लिए बहुत ही अपमानजनक है। फिर भी इस शर्तसे भी सत्याग्रही लाभ उठा सकते हैं। इतना ही नहीं, ऐसी परिस्थितिमें सत्याग्रह शुरू करना सत्या- ग्रहियों का फर्ज हो जाता है । इस समय जो सैनिक व्यवस्था कायम हो गई है, उससे स्वाभाविक रूपमें ही हिंसाका फूट निकलना, जो कि देशके लिए बहुत हानिकारक है, असम्भव हो गया है। हाल ही में फूट पड़नेवाले दंगे इतने अचानक हुए थे कि सरकार तुरन्त उनसे निपट सकनेके लिए तैयार नहीं थी । परन्तु इन दो महीनोंमें सरकारकी तैयारी पूरी हो जानेकी आशा है। इसलिए सार्वजनिक शान्ति-भंगका भय और सत्याग्रहका जानबूझकर या अनजानेमें दुरुपयोग करना लगभग असम्भव हो जायेगा। ऐसी परिस्थितिमें सत्याग्रही दंगोंके किसी डरके बिना सविनय अवज्ञा कर सकते हैं और ऐसा करके यह दिखा सकते हैं कि हिंसासे नहीं, बल्कि केवल सत्याग्रहसे ही न्याय प्राप्त किया जा सकता है।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी,खण्ड ५

मो० क० गांधी

२४८. सत्याग्रह माला - १३

मई ३, १९१९

सत्याग्रह आन्दोलन

भाइयो और बहनो,

सत्याग्रह विषयमें दो बातें अच्छी तरह समझ ली जायें, तो हमारी बहुत-सी शंकाएँ अपने आप हल हो जाती हैं। एक बात यह है कि सत्याग्रही बाहरी डरसे कुछ नहीं करता । वह केवल ईश्वरसे ही डरता है । हम यह बात ध्यानमें रखेंगे, तो स्पष्ट हो जायेगा कि हमने सविनय कानून-अवज्ञा किस लिए स्थगित की है, हॉर्निमैनको देश निकाला मिलनेपर भी हड़ताल क्यों नहीं की गई, या बड़ी-बड़ी सभाएँ क्यों नहीं की गई और जुलूस क्यों नहीं निकाले गये । यदि हम सच्चे सत्याग्रही हैं, तो हमने अपने ऊपर ऐसी रोक किसी भयके कारण नहीं लगाई है, बल्कि शुद्ध कर्तव्य-बुद्धिसे ही ऐसा किया है। सत्याग्रही जैसे-जैसे अपने कर्त्तव्यका अधिक पालन करने लगता है, वैसे-वैसे वह विजयको अधिक निकट लाता जाता है। दूसरी बात याद रखनेकी यह है -- और वह शायद मौजूदा हालतमें और भी महत्त्वपूर्ण है-- कि सत्याग्रही अपने