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२५०. सत्याग्रह माला-१४

मई ४, १९१९

जबतक द्वेष-भाव है तबतक सत्याग्रह असम्भव है

भाइयो और बहनो,

हम पिछली पत्रिकामें देख चुके हैं कि सत्याग्रहीके कार्योंपर किसी बाह्य शक्तिके भयका कोई असर नहीं होता। वह तो भीतरकी आवाजपर ही चलता है । सत्याग्रही अपने विरोधीके प्रति कभी द्वेष-भाव न रखे बल्कि उसे अपने प्रेमसे जीत ले। मैं देखता हूँ कि दूसरी बात स्वीकार करना बहुतोंको कठिन प्रतीत होता है। वे दलील देते हैं: "दुष्कृत्य करनेवाले के प्रति क्रोध उत्पन्न हुए बगैर कैसे रहे ? ऐसोंके प्रति क्रोध न करना तो मनुष्य-स्वभावके विरुद्ध है। दुष्कृत्य करनेवाला और दुष्कृत्य, दोनोंको हम अलग कैसे कर सकते हैं ? दुष्कृत्य करनेवाले के प्रति क्रोध किये बिना केवल दुष्कृत्य के प्रति क्रोध करना कैसे सम्भव है ?" पिता अपने पुत्रके प्रति क्रोध किये बिना कई बार उसके किये हुए दुष्कृत्योंके प्रति अपनी नाराजी खुद कष्ट-सहन करके जाहिर करता है। आपसमें इस प्रकारके व्यवहारसे ही पिता और पुत्रके बीचका प्रेम सम्बन्ध बना रहना सम्भव होता है। ऐसा व्यवहार न रखा जाये, तो वह सम्बन्ध टूट जाये । इस प्रकारके अनुभव हमारे दैनिक जीवनमें होते ही रहते हैं। इसीसे यह कहावत चली है कि 'झगड़ेका मुँह काला करो।' अपने पारिवारिक जीवनका यह नियम हम सरकारके साथ अपने सम्बन्धपर लागू करेंगे, तभी हम शान्तिसे रह सकेंगे और भयपूर्ण स्थितिसे मुक्त होंगे। यहाँ यह शंका नहीं उठानी चाहिए कि पारिवारिक कानून सरकारके साथके सम्बन्धपर कैसे लागू किया जा सकता है, या प्रेमके कानूनपर तभी अमल हो सकता है, यदि सामनेसे उसका जवाब मिले। परन्तु सत्याग्रहमें दोनों पक्षोंका सत्याग्रही होना जरूरी नहीं । जहाँ दोनों पक्ष सत्याग्रही हों, वहाँ तो सत्याग्रह करने या प्रेमकी परीक्षा करने की गुंजाइश ही नहीं रहती। सत्यका आग्रह करनेकी जरूरत तभी पैदा होती है, जब एक पक्ष असत्यका अथवा अन्यायका आचरण करता है। ऐसे मौकेपर ही प्रेमकी परीक्षा होती है। सच्ची मित्रताकी परीक्षा तभी होती है, जब एक पक्ष मित्रताके कर्त्तव्योंका पालन न करता हो । सरकारके विरुद्ध हम क्रोध करेंगे, तो इसमें हम घाटमें रहेंगे। ऐसा करनेसे एक-दूसरेके प्रति अविश्वास और द्वेषभाव बढ़ता है। परन्तु सरकारसे जरा भी क्रुद्ध हुए बिना और साथ ही उसके सैनिक बलसे जरा भी डरे बिना तथा जिसे हम उसका अन्याय मानते हों उसके सामने झुके बिना हम अपना व्यवहार करें, तो सरकारका अन्याय अपने-आप दूर हो जायेगा और उसके साथ बराबरीका दर्जा प्राप्त करनेका जो हमारा ध्येय है, उसे हम सहज ही प्राप्त कर लेंगे। इस बराबरीका आधार उसके पशुबलका जवाब पशुबलसे देनेकी हमारी शक्तिपर नहीं, बल्कि