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पत्र : सी० एफ० एण्ड्रयूजको

पशुबलका डर न रखकर उसके सामने अटल खड़े रहनेकी हमारी क्षमतापर है । सच्ची निर्भयता प्रेमके बिना सम्भव नहीं। जबतक हममें द्वेषभाव है, तबतक सत्याग्रहकी सच्ची विजय सम्भव नहीं। जो अपनेको कमजोर समझते हैं, वे प्रेम नहीं कर सकते । तब प्रतिदिन प्रातः हमारा पहला काम यह हो कि उस दिनके लिए हम यह संकल्प करें : “मैं पृथ्वीपर किसीसे नहीं डरूंगा। मैं केवल ईश्वरका भय मानूंगा। मैं किसीके प्रति द्वेषभाव नहीं रखूंगा। मैं किसीके अन्यायके आगे नहीं झुकूंगा। मैं असत्यपर सत्य द्वारा विजय प्राप्त करूँगा और असत्यका प्रतिकार करनेमें जो कष्ट उठाने पड़ेंगे, उन्हें सहन करूंगा। "

मो० क० गांधी

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

२५१. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

बम्बई
[ मई ४, १९१९]

प्रिय चार्ली,

मेरे पास तुम्हें पूरी पोथी लिख भेजनेका समय नहीं है, और केवल पत्र लिखनेसे सन्तोष नहीं होता। मुझे इसमें रत्ती भर शंका नहीं कि मैं व्रतके बारेमें तुम्हारे विचारोंको भ्रमपूर्ण सिद्ध कर सकता हूँ । रामके आचरणका तुम जो अर्थ लगा रहे हो, इससे जाहिर होता है कि तुमने उसे अच्छी तरह नहीं समझा है। और तुमने बाइबिलसे जो उद्धरण दिया है, उसमें 'स्वीन 'का क्या अर्थ होता है ? क्या इस उद्धरणका भी तुम्हारा किया हुआ अर्थ गलत नहीं हो सकता ? मेरा खयाल तो यह है कि ईसाका सारा जीवन ही एक सरल सादा व्रत था, जिससे दुनियाकी कोई सत्ता उन्हें विचलित नहीं कर सकती थी। तुमने अपने पत्रमें जिन दो व्रतोंका उल्लेख किया है, सो तो व्रतोंकी विडम्बना है। ऐसी बातोंके व्रत लिए ही नहीं जा सकते। मनुष्य अपने सिरजनहारके सामने खड़ा होकर यह क्यों नहीं कह सकता कि 'हे प्रभो, मेरी मदद करो कि मैं कभी झूठ न बोलू ?' फिर भी वह अपने सिरजनहारके सामने खड़ा होकर यह नहीं कह सकता कि 'अमुक-अमुक समाज या संस्थाको मैं कभी नहीं छोडूँगा ।' सम्भव है, मैं अपनी बात पूरी तरह स्पष्ट न कर सका होऊँ, परन्तु तुम स्वीकार करोगे कि मैंने बात साफ दिलसे की है। फिर जहाँ प्रेम है, वहाँ और हो ही क्या सकता है ? तुमने पक्का मालूम कर लिया कि कोड़े किस लिए लगाये गये थे? मैं जानना चाहता हूँ।