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२५४. पत्र : जे० एल० मँफीको

लैबर्नम रोड
बम्बई
मई ५, १९१९

प्रिय श्री मैफी,

आपके दोनों पत्रों और तारके लिए धन्यवाद । आपके आश्वासनसे मुझे बड़ी सान्त्वना मिली है। यह जानकर दुःख हुआ कि वाइसराय महोदयको हमारे कारण छुट्टीके दिन भी काम करना पड़ा । आशा है, इस कठिन श्रमका उनके स्वास्थ्यपर कोई बुरा असर न पड़ा होगा।

साथमें मैं अपने अभी हालके कुछ पत्रक भेज रहा हूँ। यदि आपको कुछ क्षणका भी समय मिले तो आप उन्हें देख लेंगे ।

देखता हूँ, मौलवी रफीउद्दीन अहमदने सुझाव दिया है कि इस्लामी प्रश्नों के सम्बन्धमें कोई निश्चित विश्वास-वर्धक घोषणा की जाये। यदि वास्तविक सन्तोष उत्पन्न न हो तो शक्तिके जोरपर शान्ति बनाये रखनेसे क्या लाभ, और वास्तविक सन्तोष तबतक नहीं उत्पन्न हो सकता जबतक कि मुसलमानोंकी भावनाको तुष्ट नहीं किया जाता और रौलट कानून वापस नहीं ले लिया जाता । शायद आप जानते होंगे कि खिलाफत, फिलिस्तीन और मक्का शरीफके सवालोंमें मुसलमान स्त्री-बच्चे भी गहरी दिलचस्पी लेते हैं।

रौलट कानूनोंके सम्बन्धमें यह कहा जा सकता है कि आन्दोलनकारियोंने जनताका मस्तिष्क दूषित कर दिया है, किन्तु यह बात सही हो या न हो, तथ्य यह है कि जनता उस कानूनको बिलकुल अविश्वासकी नजरसे देखती है और आप ऐसे प्रबल लोकमतके सामने कैसे टिक सकते हैं? आज भारतमें आप जो कुछ देख रहे हैं वह कोई विप्लवी षड्यंत्र नहीं है। मैं यह नहीं कहता कि भारतमें ऐसा कोई आदमी है ही नहीं जिसके मनमें विप्लवके पागलपन-भरे विचार नहीं हैं। किन्तु मैं यह अवश्य कहूँगा कि जिन बहुत सारे लोगोंने हिंसात्मक कार्योंमें भाग लिया है, उन्होंने उग्र और क्रुद्ध रूपसे अपनी दमित भावनाको ही व्यक्त किया है; और यह उनका रोषपूर्ण विरोध भर है, अधिक कुछ नहीं। यहाँ अभी विप्लववाद [ बोल्शेविज्म ] नहीं आया है। किन्तु मैं चाहता हूँ, आप इस बातपर विचार करें कि क्या आप सत्याग्रहके सिद्धान्तका समर्थन किये बिना इसका आना या इन रोषपूर्ण हिंसात्मक कार्रवाइयोंका होना रोक सकते हैं। मैं तो मानता हूँ, और आपसे भी ऐसा ही माननेका अनुरोध करूँगा, कि लोगोंको संयत रखने में जितना बड़ा हाथ सत्याग्रहका है, उतना इस तथ्यका नहीं कि सेनाको यत्र-तत्र तैनात कर दिया गया है। मेरा खयाल है, इस बातको सभी लोग स्वीकार करते हैं कि जब श्री हॉनिमैनको निर्वासित किया गया, उस समय यदि लोगोंने