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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय

स्वराज्य प्राप्त करनेके विषयमें में पिछड़े विचारोंका व्यक्ति नहीं हूँ बल्कि एक प्रचण्ड योद्धा हूँ । यदि हम साम्राज्य में समान अधिकारोंकी माँग करते हैं तो हमें उसको वर्तमान संकटसे उबारना चाहिए और तभी हम समान हिस्सा लेने योग्य माने जायेंगे। एक पक्ष यह कहता है कि पहले हमें स्वराज्यका अधिकार, सेनामें तथा अन्यत्र समान अधिकार दिये जायें तभी हम ब्रिटिश सरकारकी मदद करेंगे । यह पक्ष एकदम उपेक्षाके योग्य नहीं है । लेकिन उनकी माँगमें त्रुटि यह है कि साम्राज्य [ आपकी ] मददके लिए बैठा नहीं रहा है। फिलहाल हमारे साथ उसका सम्बन्ध, स्वामी और दास तथा राजा और प्रजाका है । उस सम्बन्धको बदलकर वे हमें अपना हिस्सेदार बनायें यह उनकी अपनी इच्छा- पर निर्भर करता है । तब, कल्पना करो, साम्राज्य हमें साझीदार नहीं बनाना चाहता; तो हम उसके सम्मुख क्या शर्तें रखेंगे ? कुछ लोगोंका अनुमान है कि जब साम्राज्य- पर और विपत्ति आयेगी तब वह हमारी समस्त शर्तोंको स्वीकार कर लेगा और उसके बाद हम मदद करेंगे । लेकिन वैसा करनेमें हम भारी जोखिम उठाते हैं । हमें तो यह कामना करनी चाहिए कि उसपर कभी ऐसी विपत्ति न आये । हम साम्राज्यको सहायता देनेके अवसरकी तलाशमें थे, वह हमें मिल गया है । इसलिए हमें उसका पूरा लाभ उठाना चाहिए। इस समय मैं सारे भारतवर्षका दौरा कर रहा हूँ। और मैंने जो अपनी आँखोंसे देखा है उसके आधारपर कहता हूँ कि हिन्दुस्तानकी लड़नेकी शक्ति बिलकुल नष्ट हो गई है। उसमें रत्ती भर भी बल नहीं है । यदि किसी गाँवमें एक बाघ आ जाये, तो गाँववालोंमें उसे मारनेकी भी शक्ति नहीं है, जिससे बाघको मार देनेके लिए वे कलक्टरसे प्रार्थना करते हैं । डाकू आदि आयें तो उनको भी मार भगानेकी शक्ति गाँववालोंमें नहीं है । जो लोग अपना बचाव करनेमें समर्थ नहीं हैं क्या वे स्वराज्य भोग सकेंगे ? स्वराज्य वकीलों और डॉक्टरोंके लिए नहीं बल्कि उन लोगोंके लिए है जिनके पास बाहुबल है । जो लोग अपने शरीर और स्त्री- बच्चोंकी, पशुओं और जमीनोंकी रक्षा नहीं कर सकते, वे स्वराज्य कैसे भोग सकते हैं ? हमारे देशके लोगोंकी ऐसी दुर्दशा क्यों हुई और इसके लिए कौन उत्तरदायी है, फिलहाल उसपर विचार करनेकी नहीं अपितु उसका हल ढूंढ़ निकालनेकी आवश्यकता है । जब लोग तन्दुरुस्त और शमशेर बहादुर बनेंगे तब हमें स्वराज्य स्वयमेव मिल जायेगा । जो प्रजा अपना बल खो बैठी है वह अपने धर्मकी रक्षा कैसे कर सकती है ? पिछले तीन महीनोंके अनुभवसे मैं जान पाया हूँ कि एक तो हम लोग बहुत डरपोक हैं । जो प्रजा एक गिलहरी तक से डरती है उसे स्वराज्य प्राप्त करनेकी कल्पना न करके अपनी स्थिति सुधारनेके सम्बन्धमें विचार करना चाहिए। हमने लड़नेकी जो शक्ति खो दी है उसे [ पुनः ] प्राप्त करनेके लिए हमें अमूल्य अवसर मिला है। उसे हमें व्यर्थ नहीं खोना चाहिए। जिस प्रजाको किलेकी दिशाका भान नहीं है, तोप कैसे चलानी चाहिए इसका ज्ञान नहीं है, बचावके लिए सरहद पर नाकाबन्दी करनेके सम्बन्धमें कुछ पता नहीं है,--वह प्रजा यदि यह सब कुछ जानना चाहती है तो हमें पाँच लाख व्यक्तियोंको सेना में भरती करने का जो अत्युत्तम अवसर मिला है उसे कदापि नहीं खोना चाहिए। यह मानने की जरूरत नहीं कि हम सरकारकी मदद कर रहे हैं; हमें यह मानना चाहिए कि हम इस अवसरका उपयोग सैनिक बल प्राप्त करने और उसका प्रशिक्षण लेनेके लिए