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पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

ही कर रहे हैं । यदि आप इस अमूल्य अवसरको गँवा देंगे तो पछतायेंगे । श्री तिलक कहते हैं कि बिना शर्तके युद्धमें शामिल नहीं होना चाहिए । लेकिन श्री तिलक आपके लिए जितने पूज्य हैं उससे कहीं अधिक मैं उनको पूज्य मानता हूँ । उनको जितना आदर-सम्मान दिया जाये उतना कम है । यदि [ एकबार ] ५ लाख व्यक्ति लड़ाईपर चले गये और बादमें उन्हें सेनामें ऊँचे ओहदोंपर नियुक्त नहीं किया गया तो देश- भरमें विद्रोह हो जायेगा और खूनकी नदियाँ बह निकलेंगी। अभी श्री तिलकके कथन- पर विचार करनेका समय नहीं है । हम [ युद्धमें ] जो सेवाएँ अर्पित करेंगे उनमें ही उनकी शंकाका समाधान छिपा हुआ है । जिन पाँच लाख व्यक्तियोंकी सेनाको हम तैयार करके युद्धमें भेजेंगे वे स्वराज्यकी भावनासे ही जायेंगे । वे वापस आयेंगे तो उन्हें तो स्वराज्य अवश्य मिलेगा । इन पाँच लाख व्यक्तियोंने सैनिक अनुशासनका प्रशिक्षण लिया होगा तो अन्य पाँच लाख लोगोंको प्रेरणा मिलेगी । और इसलिए रंगरूटोंकी भरतीमें माता- पिताओंको देश-प्रेमकी बात समझानी चाहिए। मैं उन्हें यही समझाता हूँ । अमेरिका प्रति- मास तीन लाख [ व्यक्तियों ] की मदद देता है और यदि हम न देगें तो हम अपने हक खो बैठेंगे। इसलिए मैं आपसे बार-बार प्रार्थना करता हूँ कि यदि यह वस्तु एक बार हमारे हाथमें आकर जाती रही तो बादमें दूसरी वस्तु [ स्वराज्य ] प्राप्त करनेका अवसर नहीं मिलेगा। मैं जो आपसे कह रहा हूँ उसपर मनन करें और यदि उचित लगे तो बलिदानके लिए आगे आयें। किन्तु यदि आप श्री तिलककी तरह शर्तें पेश करेंगे तो मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगेगा । इतना कहकर में बैठनेकी इजाजत चाहता हूँ ।

[ गुजरातीसे ]

गुजरात मित्र अने गुजरात दर्पण, ४-८-१९१८

२. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

अगस्त ६, १९१८

प्रिय चार्ली,

२ इस बार मैं भलमनसाहतसे काम लूँगा अर्थात् तन्दुरुस्तीके मामलेमें ईश्वर और मनुष्यके नियम तोड़नेका आरोप तुमपर नहीं लगाऊँगा । किन्तु इसमें शक नहीं कि तुम्हारे लिए एक अभिभावक, जिसे आम तौरपर नर्स कहते हैं, की जरूरत है । मेरी बड़ी इच्छा होती है कि वह पद मैं ले लूँ । मेरे जैसी नर्स, जो तुमपर प्रेम रखे और साथ ही डॉक्टरोंकी आज्ञाओंका सख्तीसे पालन कराये, तुम्हें कोई न मिल सके तो तुम्हें ऐसी पत्नीकी जरूरत है, जो इस बातका ध्यान रखे कि तुमको भोजन अच्छी

१. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ( १८५६-१९२० ); देशभक्त, राजनीतिज्ञ और विद्वान्; देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४१८ ।

२. (१८७१-१९४०); ब्रिटिश मिशनरी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर और गांधीजीके सहयोगी, "दीनबन्धु " के नामसे प्रसिद्ध ।