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भाषण : बम्बईकी सभा में

जो कुछ भी करें उसमें किस तरहसे शान्ति बनाई रखी जा सकती है। मुझे उम्मीद है, जिस व्यक्तिके मनमें भाई हॉर्निमैनके प्रति आदरका भाव होगा वह अयोग्य काम कदापि नहीं करेगा। हम यदि जोर-जबरदस्तीसे किसी व्यक्तिकी दुकान बन्द करवायें तो इसका यह अर्थ होगा कि हम भाई हॉर्निमैनका पर्याप्त आदर नहीं करते। दरअसल हरएक व्यक्तिको अपना काम-काज खुद अपनी ओरसे ही बन्द कर देना चाहिए। तभी यह कहा जा सकता है कि हमारे मनमें भाई हॉर्निमैनके प्रति आदरका भाव है।

हम भाई हॉनिमैनके प्रति आदरका भाव रखते हैं, यह बताने के लिए हमें अपना सन्देश शहरके कोने-कोने में पहुँचाना चाहिए। रविवार के दिन भाई हॉर्निमैनके सम्मान में हरएक कौमको अपना कामकाज खुशीसे बन्द रखना चाहिए। किसीके ऊपर जुल्म नहीं किया जाना चाहिए। मुझे यह भय बना रहता है कि कहीं कोई व्यक्ति अपने अन्धे प्रेमके वशीभूत होकर किसीपर बलप्रयोग न करे । यदि कोई ऐसा करेगा तो ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उसके मनमें भाई हॉर्निमैनके प्रति आदर भाव है। होना ऐसा चाहिए कि गाड़ीवाले अपनी मरजीसे गाड़ियाँ न चलायें, गरीबसे गरीब दुकानदार अपनी रोजी खोकर उस दिन खुशीसे अपनी दुकान बन्द करे। हमें ट्राम नहीं रोकनी और न बैठे हुए लोगोंको उसमें से उतारनेकी ही आवश्यकता है।

मेरी ऐसी राय है कि रविवारको हमें अपना काम-काज बन्द कर देना चाहिए और दूसरोंको इसकी सूचना देनी चाहिए कि हरएक व्यक्तिको यह काम पूरे उत्साहके साथ करना है। हाँ, जिन्होंने भाई हॉनिमैनका नाम तक नहीं सुना उनसे कहना चाहिए कि "भाई, क्या आपने भाई हॉर्निमैनका नाम सुना है? वे बम्बईके ही नहीं भारतके लोगोंकी स्वदेशके प्रति भावनाओंको जाग्रत रखते थे और हिन्दके सच्चे सेवक थे। उन्हें सरकारने देश-निकाला दिया है और उनके समाचारपत्रके प्रकाशनको बन्द कर दिया है; उसके समाचारोंपर नियन्त्रण [ सेन्सर ] लगा दिया है जो उसे बन्द करनेके समान ही है। इसके अलावा उनकी २,००० रुपयेकी जमानत भी जब्त कर ली गई है। यदि आपके मनमें ऐसे व्यक्ति के प्रति आदर है तो आजका अपना काम आपको अपनी खुशीसे बन्द रखना चाहिए।" यदि इन शब्दोंका उनपर असर नहीं होता तो हमें उनकी इच्छाके विरुद्ध जबरदस्ती काम-काज बन्द करवाने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि डरके मारे कोई ऐसा करे भी तो हमें उससे कोई लाभ नहीं होगा ।

अब हमें दूसरी बात यह करनी है कि उस दिन हम उपवास रखें। इस सम्बन्ध में में कल एक पुस्तिका प्रकाशित करनेवाला हूँ। उसे ध्यानसे पढ़ना । जिन्हें समझमें न आये उन्हें भी समझाना। इस समय मैं वक्त बरबाद नहीं करना चाहता। मैं अपनी हालकी अन्य पत्रिकाओंको भी पढ़ जाने की सलाह देता हूँ । यदि हम सारा दिन अपने कर्त्तव्यका विचार करते रहें तो हमारे मनमें क्रोध प्रवेश कर ही नहीं सकता। हिन्दुओंको मैंने यह सलाह दी है कि उस दिन 'गीता' का अध्ययन करें । जो स्वयं उसे समझ न पाते हों वे दूसरोंसे 'गीता' को समझें । 'गीताजी' जैसी सरल पुस्तकसे लोगोंको बहुत लाभ हो सकता है। बहुत सारे लोगोंने 'गीताजी' के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न व्याख्या की है। मैंने भी अध्ययन करके उसका कुछ रहस्य समझा है । और उसे एक