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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिन आपको बतानेकी मेरी इच्छा है। जिन्हें अध्ययन करनेकी तीव्र इच्छा होगी वे तो अध्ययन करेंगे ही। स्वयं संस्कृत नहीं जाननेपर किसी शास्त्रीको बुलाकर भी उसका अयध्ययन कर सकते हैं। यदि कोई यह कहे कि मैं स्वयं कुछ समझता नहीं हूँ और मुझ गरीबके यहाँ शास्त्री भी कैसे आये तो समर्थ लोगोंको उसकी मदद करनी चाहिए। उन्हें ऐसे लोगोंसे कहना चाहिए “भाइयो, आप हमारे घर आइयेगा; हम साथ-साथ उसे समझेंगे । जब ऐसा भ्रातृभाव आपमें आयेगा तब किसीकी हिम्मत नहीं है कि वह हिन्दुस्तानपर आँख उठा सके। निष्ठापूर्वक रविवारका दिन व्यतीत करनेके लिए आप ध्यानपूर्वक 'गीता' का अध्ययन करें। अनेक बार ऐसा होता है कि कथा- वाचक कथा बाँचता है और बाकीके लोग बातचीत करते हैं। लेकिन इस रविवारको आप ध्यानपूर्वक 'गीता'ही सुनियेगा । घरके मुखियाको इस बातकी सावधानी रखनी चाहिए कि दूसरे सुननेवाले ध्यानपूर्वक सुन रहे हैं। यदि आपने इन बातोंको ध्यान- पूर्वक नहीं सुना तो आप किसी भी दिन भाई हॉनिमैनका कुछ भला नहीं कर पायेंगे और इससे यह भी प्रकट नहीं होगा कि आप उनको मान देते हैं ।

प्रत्येक मनुष्यको अपना फर्ज जानना चाहिए। हरएकको इस बातकी प्रतीति होनी चाहिए कि उसका जन्म हिन्दुस्तानमें हुआ है और इसलिए उसे जानना चाहिए कि हिन्दुस्तानके प्रति उसका क्या कर्त्तव्य है और किस तरह उस कर्त्तव्यका पालन किया जाना चाहिए ? यदि में बम्बईमें पैदा हुआ हूँ तो उसके प्रति मेरा क्या कर्त्तव्य है ? मैं सत्याग्रही हूँ तो किस लिए? मुझे सत्याग्रहके रूपमें क्या कर्त्तव्य करना है ? आदि ।

सारे बम्बई शहरके लोग यदि इस रविवारको इस तरीकेसे निष्ठापूर्वक मनन करते हुए अपना दिन व्यतीत करें तो कितना अधिक लाभ हो ? मेरी धारणा है कि आपमें से कोई भी यह नहीं मानता कि सरकारने सोच-समझकर रौलट जैसे विधेयकको पारित किया है। और यदि कोई ऐसा सोचता है तो यह उसकी भूल है। सरकारको हमने कोई कारण ही नहीं दिया कि वह ऐसा करती तो फिर हम यह धारणा कैसे बना सकते हैं ?

वातावरणके भीतर जब कोई बड़ा विचार व्याप्त हो जाता है तब उसका गुरु-गम्भीर प्रभाव होता है। यह मेरा प्रत्यक्ष अनुभव है और यह अनुभव मैने दक्षिण आफ्रिकाकी आठ वर्षकी लड़ाईसे प्राप्त किया है। उस महाद्वीपके लोगोंमें एक चमत्कार ही व्याप्त हो गया था। वहाँ थोड़े व्यक्ति जेल गये, इसलिए दूसरोंने भी अपनी खुशीसे काम-काज छोड़कर जेल जाना पसन्द किया और उसका जो फल निकला सो आप जानते हैं। वहाँ के लोगोंमें उपर्युक्त भावना फैल गई थी। हिन्दुस्तानमें भी वैसी ही भावना की जरूरत है। सत्याग्रही ऐसी प्रबल [ भावना ] ही देंगे। मैं स्वीकार करता हूँ कि उनमें भी अभी कुछ कमी है। लेकिन हम चाहे कितने ही अपूर्ण क्यों न हों यदि हमारी भावना मधुर और उत्तम हो तो ईश्वर हमारी सहायता करता है। उनकी इस कमीको जनसमाज पूरा कर देगा।

इसलिए आनेवाला रविवार, हमें धर्मका पालन करते हुए पूर्ण शान्तिके साथ बिताना है। बहुतसे व्यक्ति कहते हैं कि “इस सम्बन्धमें हम अपना क्रोध कैसे दबायें, इस परिस्थिति में हम मार-धाड़ किये बिना कैसे रह सकते हैं ?" सच बात तो यह है कि