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भाषण : बम्बईकी सभामें

आज जो वातावरण विद्यमान है उसमें अनेक लोगोंके मनमें ऐसे विचारोंका आना स्वाभाविक है। लेकिन फिर भी जो अपने मनपर नियन्त्रण रखकर अहिंसाके नियमोंपर विचार करेंगे उनकी शंकाका सहज ही समाधान हो जायेगा और उनके विचार तुरन्त बदल जायेंगे। हमें आनेवाले रविवारके दिन बम्बईके नामको उज्ज्वल बनाने के साथ लोगोंपर नियन्त्रण भी रखना है। क्योंकि सबकी बुद्धि एक समान नहीं होती। यदि कोई बलपूर्वक दुकान बन्द करवाने का प्रयत्न करे, कोई ट्राम रोकनेका प्रयत्न करे तो उनके पास जाकर विनयपूर्वक हमें कहना चाहिए कि "भाई, क्या आप हॉनिमैन को मान देते हैं ? यदि हाँ तो हम उनके नामपर आपसे ऐसा न करनेका अनुरोध करते हैं।" इस तरह सिपहगरी करते हुए हमें शान्ति बनाये रखना है। स्वयंसेवकोंसे भी अपना काम अच्छी तरहसे करनेके लिए कहना है । ऐसे कई व्यक्ति जो यहाँ नहीं आ सके हैं उन्हें आपको यह सब-कुछ समझाना चाहिए; यह आपका कर्त्तव्य है।[१]

इच्छा [ तो ] मेरी भी ऐसी ही थी; लेकिन मेरी हिम्मत नहीं पड़ती थी। अभी हमारे लाखों देशभाइयोंने तालीम नहीं ली है और वे पढ़े-लिखे नहीं हैं। इस सभामें उपस्थित लोगोंपर हम जो नियन्त्रण रख पा रहे हैं वह लाखों मनुष्योंपर वहाँ नहीं रखा जा सकेगा। किसी-किसीकी बुद्धि ही विपरीत होती है और उसे उपद्रव करना अच्छा लगता है। इसलिए फिलहाल इस विचारको छोड़ देना ही ठीक है।

बम्बईमें बड़ी सभाएँ आयोजित करनेका काम इन दिनों सहल हो गया है । क्योंकि बम्बईकी जनतामें अभी बहुत उत्साह व्याप्त है। लेकिन फिलहाल वैसी सभाएँ आयोजित करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। पहले नेतागण प्रजाका नेतृत्व करते थे। अब समय ऐसा है कि यदि नेता आलस करके बैठा रहे तो जनता तुरन्त उसे टोककर कहेगी कि "भाई, आगे बढ़ो; नहीं तो तुम्हारी परवाह किये बिना हम आगे बढ़ेंगे।”

[ गुजरातीसे ]

गुजराती, ११-५-१९१९

  1. १. गांधीजीने तब सभामें उपस्थित लोगोंसे अनुरोध किया कि यदि उनके मनमें किसी प्रकारका सन्देह है अथवा उन्होंने अफवाहें सुनी हों तो उस सम्बन्ध में वे उनसे प्रश्न पूछ सकते हैं । नीचे दिया गया अंश एक गृहस्थ द्वारा पूछे गये इस प्रश्नके उत्तरमें है कि : “यदि हम रविवारको स्नान करके धर्मस्थानमें अथवा चौपाटीपर बैठकर धर्मका ध्यान करें तो क्या बुरा है?"