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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि हम जो कुछ पढ़ते और देखते हैं, उसमें अपनी ही भावनाओंकी प्रतिच्छाया पाते हैं। यदि यह सच है कि ईश्वरने मनुष्यको अपने जैसा ही बनाया है तो यह भी उतना ही सच है कि मनुष्य भी जैसा स्वयं होता है, अपने लिए वैसा ही ईश्वर बना लेता है। मुझे तो 'भगवद्गीता' के प्रत्येक पृष्ठमें प्रेमके अतिरिक्त कुछ नहीं मिला और मैं आशा और प्रार्थना करता हूँ कि रविवारको अन्य सारे लोगोंको भी ऐसा ही दिखाई देगा।

मो० क० गांधी

गांधी स्मारक निधिमें सुरक्षित 'सांझ वर्तमान प्रेस, फोर्ट, बम्बई द्वारा मुद्रित मूल अंग्रेजी पत्रकसे ।

सौजन्य : एच० एस० एल० पोलक

२६६. पत्र : ओ० एस० घाटेको

लैबर्नम रोड
बम्बई
मई ८, १९१९

प्रिय श्री घाटे,

मैंने सरकारके नाम [ अली ] बन्धुओंका प्रार्थनापत्र देखा है। यदि यह अभी भेजा न गया हो तो मैं चाहता हूँ कि यह भेजा ही न जाये । वह हमारे गौरवके अनुरूप नहीं है । उसकी भाषा असंयत है और उसमें मामला बढ़ा-चढ़ाकर रखा गया है । मुसलमानोंकी माँगमें युद्ध-पूर्वके प्रश्न भी शामिल कर लिये गये हैं। निश्चय ही यह माँग बहुत ज्यादा है । मैं तो यह चाहता हूँ कि वे अपनी न्यूनतम माँगोंकी एक विवृत्ति तैयार करें । हिजराके[१] प्रश्नपर मैंने जिन मित्रोंसे भी बातचीत की सबने इस विचारसे असहमति प्रकट की और मौलाना साहबने भी इसे अस्वीकार कर दिया। मैं सबसे अधिक पसन्द यह करूँगा कि इस्लामकी न्यूनतम माँगोंकी एक युक्ति-युक्त और प्रामाणिक विवृत्ति तैयार की जाये । अफगानिस्तानमें जो कुछ हो रहा है?[२] उसके सम्बन्धमें मैं अपने मित्रोंका विचार जानना चाहूँगा । शायद ऐसा समय आ गया हो जब हम अतीव दूरदर्शिता और विवेकशीलताके बलपर ही इस आगसे बाहर निकल सकते हैं ।

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६५९८) की फोटो-नकलसे ।

  1. १. भारतसे ।
  2. २. अफगान युद्ध ।